राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने किसानों के रिण माफ किये जाने को नैतिक संकट करार दिया और कहा कि इस तरह की सुविधायें केवल जरूरतमंदों को ही दी जानी चाहिये. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के 36,000 करोड़ रुपये के कृषि रिण माफ करने की घोषणा करने के एक सप्ताह बाद नाबार्ड चेयरमैन हर्ष कुमार भानवाला ने कहा, कर्ज लौटाने के लिहाज से रिण माफी एक प्रकार का नैतिक संकट खड़ा करता है.
सबका कर्ज माफ क्यों?
नाबार्ड के चेयरमैन के मुताबिक विभिन्न प्रायोजन के लिये इस तरह के माफी पैकेज नहीं लाए जा सकते हैं. हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु सहित विभिन्न राज्यों में इस तरह की मांग उठ रही हैं. ऐसे में रिण माफी से पैदा होने वाले नैतिक संकट पर विचार करने की जरूरत है. इस प्रकार की माफी योजनायें केवल जरूरतमंद किसानों के लिये ही होनी चाहिये. NABARD के चेयरमैन का मानना है कि हर बार कोई न कोई रिण माफी योजना घोषित कर दी जाती है. यह करदाताओं का पैसा है जिसे किसानों को कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है.
SBI, RBI के बाद अब NABARD का दावा
नाबार्ड के चेयरमैन की यह टिप्पणी रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल की किसानों की रिण माफी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त किये जाने के कुछ दिन बाद आई है. नाबार्ड ने 2016-17 के लिये अपने शुद्ध लाभ में 4.24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। उसका लाभ इस दौरान बढ़कर 2,631 करोड़ रुपये हो गया जबकि बकाया कर्ज 16.27 प्रतिशत बढ़कर 3,080 अरब रुपये हो गया.
वित्तीय वर्ष 2016-17 में कृषि रिण के लिये सरकार द्वारा तय 9,000 अरब रुपये का कर्ज आंकड़ा पार होने वाला है और 2018 में यह 10,000 अरब रुपये के लक्ष्य को पार करता हुआ अपने प्रदर्शन को दोहरायेगा.
नामुमकिन हो जाएगा बैंकों के लिए किसानों को कर्ज देना
गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख अरुनधती भट्टाचार्या ने प्रदेश में किसानों के कर्ज को माफ करने के संबंध कह चुकी हैं कि ऐसे चुनावी वादों से देश में क्रेडिट अनुशाषन खराब होता है. अरुनधती के मुताबिक जिन किसानों को इसका फायदा मिलेगा वह नए कर्ज की माफी के लिए भी अगले चुनाव में किसी राजनीतिक दल के भरोसे बैठे रहेंगे.
किसानों को कर्ज देना बैंकों के लिए मुसीबत
चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सत्ता पर काबिज होने वाले राजनीतिक दल सरकार के खजाने से पैसे अदा करते हैं. इसके बावजूद देश के बैंकों के लिए पूरी प्रक्रिया एक गंभीर चुनौती बन जाती है. बैंकों से नया कर्ज लेने वाले किसान पहले से आश्वस्त रहते हैं कि उन्हें इस कर्ज पर भी माफी मिल जाएगी. वहीं किसानों को कर्ज देना बैंकों के लिए सिर्फ एक व्यर्थ प्रक्रिया बनकर रह जाती है क्योंकि उससे कर्ज लेने वाले किसानों को बस चुनाव का इंतजार रहता है कि कोई राजनीतिक दल उनसे कर्ज माफी का वादा कर ले.