नोटबंदी की तपस्या का फल, आयकर में रियायत, नई नई सब्सिडी, ग्रोथ को खुराक, नए नौकरियां और भी न जाने क्या क्या? बजट से उम्मीदों की फेहरिस्त कुछ ज्यादा ही लंबी नहीं हो गई है? ध्यान रखिये कि अगर उम्मीदें हैं तो आशंकायें भी पास ही छिपी होंगी. इसलिए उम्मीदों की उड़ान के साथ यह दुआ भी जरुरी है कि वित्त मंत्री भले ही कुछ न दें लेकिन ऐसा कुछ न कर बैठें जिससे टैक्सों का बोझ और बढ़ जाए.
दुआ करें कि बजट में क्या क्या नहीं होना चाहिए.
खर्च पर टैक्स – कुछ तो बख्श दीजिये हुजूर!
आइडिया हैं किसी को भी आ सकते हैं. लेकिन यह सिर्फ आइडिया नहीं है. नोटबंदी के बाद से वित्त मंत्रालय के गलियारों में एक्सपेंडीचर टैक्स पर चर्चा की आहटें सुनी गई हैं. सुझाव हैं कि आयकर में रियायत के बदलने 20,000 रुपये से ऊपर के खर्च (मेडिकल खर्च को छोड़कर) पर एक फीसदी टैक्स लगा दिया जाए!
चौंकिये नहीं खर्च पर टैक्स नया नहीं है. एक्सपेंडीचर टैक्स 1987 के तहत महंगे होटलों और रेस्टोंरेंट में बिलों पर यह टैक्स लगाने की व्यवस्था आज भी है. अगर अरुण जेटली यह टैक्स लगाते हैं तो वह ऐसा करने वाले पहले वित्त मंत्री हरगिज नहीं होंगे. 1957 में वित्त मंत्री तिरुवलूर थत्ताहई (टी टी) कृष्णोमाचारी पहली बार यह टैक्स लेकर आए थे. 1962 तत्कालीन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने इसे हटा दिया लेकिन 1964 में यह फिर लौट आया. 1966 में इसकी फिर विदाई हुई. चौधरी चरण सिंह ने 1979 इसे लाने की कोशिश की थी. वह इसे इनकम टैक्स का विकल्प बनाना चाहते थे अलबत्ता सहमति नहीं. हालांकि इस टैक्स से कभी बहुत राजस्व नहीं मिला.
क्यों भारत में इन टैक्सों को नहीं लगना चाहिए?
किसी भी ऐसे देश में जहां कमाई पर इनकम टैक्स और उत्पादन व उपभोग पर एक्साइज व कस्टम डयूटी लगती है वहां खर्च पर टैक्सों का मतलब है कि मांग और उपभोग पर पाबंदी, खर्च पर टैक्स दकियानूसी है. उम्मीद है कि वित्त मंत्री खुद को दकियानूसी कहलाना पसंद नहीं करेंगे.
बैंकों से नकद निकासी पर टैक्स – क्यों फेल हुआ था चिदंबरम से पूछिये!
यह प्रस्ताव डिजिटल लेन देने बढ़ाने पर मुख्यमंत्रियों की समिति की सिफारिशों का हिस्सा बन कर औपचारिक तौर पर सरकार की मेज पर पहुंच चुका है. इस समिति के मुखिया आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू हैं.
अलबत्ता इस टैक्स पर विचार करने से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली पिछले वित्त मंत्री पी चिदंबरम से विमर्श जरुर करना चाहिए. वह भी बडे उत्साह के साथ 2005 के बैकिंग कैश ट्रांजेक्शनन टैक्स (बीसीटीटी) लेकर आए थे जो पहले 25,000 रुपये तक की नकद निकासी पर लगा और बाद में सीमा बढाकर 50000 रुपये की गई.
चिदंबरम ने काले धन की पूंछ पकड़ने में इस टैक्स को बहुत कामयाब कहा था लेकिन राजस्व संग्रह में बुरी तरह असफल होने के बाद 2009 में इसे वापस ले लिया गया.
एक्सपेंडीचर टैक्से वाला तर्क यहां भी लागू होता है जब कमाई और खपत पर टैक्स लगता है तो अपनी साफ सुथरी कमाई को बैंकों से निकालने पर टैक्स अनुचित है. उम्मीद है कि जेटली यह टैक्स लगाकर राजनीतिक नुकसान नहीं बढायेंगे.
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शंन टैक्स – बढ़ाइये नहीं हटा दीजिये
शेयरों की खुदरा खरीद बिक्री पर 2004 से एसटीटी लगता है. इनकम टैक्स आंकडों की खुदाई से पता चलता है कि इसे हर साल सरकार को औसतन 6000 करोड़ रुपये राजस्व मिलता है. वित्त मंत्रालय के गलियारों में चर्चा है कि एसटीटी की दर बढ़ाई जा सकती है.
हालांकि आंकडे बताते हैं कि इनकम से कमाई में बढोत्तजरी की तुलना में एसटीटी से आय घट रही है. बेहतर होगा कि वित्त मंत्री इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स का हिस्सा बना दें जो एक साल से कम अवधि के शेयर निवेश पर 15 फीसदी की दर से लगता है. इससे छोटे निवेशकों को निवेश में प्रोत्साहन मिलेगा.
सर्विस टैक्स में बढोत्तकरी – इतनी निर्ममता भी ठीक नहीं !
सर्विस टैक्स बढने की चर्चा है. लाजिमी है अगर जुलाई से जीएसटी आना है तो सर्विस टैक्स की दर में एक या दो फीसदी का (15.5 से 17 फीसदी ) इजाफा हो सकता है. रियायतों का बिल सुधारने में यह मदद भी करेगा. क्योंकि जीएसटी आने तक छह माह में इसकी ठीक ठाक वसूली हो जाएगी.
लेकिन वित्त मंत्री इस बजट में सर्विस टैक्स नही बढ़ाना चाहिए. इसे जीएसटी के साथ आना चाहिए जब निर्माता और व्यापारियों को इसका क्रेडिट (चुकाये गए टैक्स की वापसी) की सुविधा मिलेगी.
इस बजट मे सर्विस टैक्सों की दर में बढोत्तकरी महंगाई बढ़ाकर मांग और तोड़ेगी जो नोटबंदी के कारण बुरी हालत में है. फिर भी अगर वित्त मंत्री दर बढ़ाना ही चाहते हैं तो उन्हें कम से छोटे कारोबारियों के लिए छूट की सीमा (दस लाख रुपये तक का सालाना कारोबार) को बढ़ाना चाहिए ताकि नोटबंदी की मार पर मलहम लग सके.
वह टैक्स जो लगना चाहिए
विरासत पर टैक्सो को फिर आजमाइये
अगर वित्त मंत्री हकीकत में कर लगाना ही चाहते हैं तो फिर उन्हें अपना हाथ विरासत टैक्से (इनहेरिटेंस टैक्स ) पर आजमाना चाहिए. 1953 में भारत में यह टैक्स शुरु हुआ था जिसे 1985 में वापस ले लिया गया.
ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एक फीसदी लोगों के पास 58 फीसदी संपत्ति है. देश में 57 अरबपति हैं जिनकी कुल संपत्ति की देश की 70 फीसदी आबादी की संपत्ति के बराबर है.
अध्ययन बताते हैं कि अगले बीस साल में यह सभी सुपर रिच अपनी संपत्ति अपने वारिसों को देंगे. इस विरासत के ट्रांसफर पर टैक्स एक तर्कसंगत रास्ता हो सकता है.