नोटबंदी ऐलान पर उठे एक सवाल के जवाब में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्पीच कानून से बड़ी नहीं है. भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मंगलवार कोर्ट को बताया कि नोटबंदी के ऐलान के बाद 30 दिसंबर की डेडलाइन कानून के मुताबिक है. वहीं इस तारीख को 31 दिसंबर करने का पीएम मोदी का वादा इस कानून से बड़ा नहीं है.
यह सवाल सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने आई एक याचिका से उठा है. इस याचिका में केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक पर नोटबंदी की घोषणा के वक्त किए गए वादे से मुकरने का आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक को नोटिस जारी कर मामले में जवाब मांगा था.
एक याचिकाकर्ताओं ने पुरानी करेंसी जमा करने पर पेनाल्टी के प्रावधान पर सवाल उठाते हुए कोर्ट से गुहार लगाई थी कि पीएम मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान करते वक्त अपनी स्पीच में वादा किया था. नोटबंदी के फैसले में 30 दिसंबर 2016 तक प्रतिबंधित की गई करेंसी को बैंक में जमा कराने की डेडलाइन तय की थी. लेकिन पीएम मोदी ने वादा किया था कि जो नागरिक किसी कारण से इस अवधि तक अपने पास रखी प्रतिबंधित करेंसी को जमा नहीं करा पाता, उसे 31 मार्च 2017 तक रिजर्व बैंक में यह करेंसी जमा कराने का मौका मिलेगा.
नोटबंदी के ऐलान के बाद रिजर्व बैंक ने भी अपने सर्कुलर में कहा था कि पुरानी करेंसी को 31 मार्च तक रिजर्व बैंक में जमा किया जा सकेगा. हालांकि उसने रिजर्व बैंक में जमा कराने वालों को यह वजह बताने की शर्त रख दी थी कि क्यों उक्त करेंसी को 30 दिसंबर 2016 की डेडलाइन तक नहीं जमा कराया गया.
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में अगली सुनवाई 11 अप्रैल की तय की है. कोर्ट में बेंच ने याचिकाकर्ता से यह जानकारी भी मांगी कि क्या वह नोटबंदी की तय मियाद 30 दिसंबर 2016 तक भारत में नहीं थे. वहीं कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि आखिर क्यों केन्द्र सरकार ने क्यों नागरिकों को 31 मार्च 2017 तक प्रतिबंधिक करेंसी को नहीं जमा करने दिया.