नोटबंदी के बाद भले ही बैंकों के पास पुराने नोटों के रूप में एक बड़ी रकम पहुंची हो, लेकिन अब बैंकों पर इसका नकारात्मक असर पड़ता दिख रहा है. बैंक डिपोजिट ग्रोथ रेट पिछले 55 सालों में सबसे कम हो गया है. मार्च 2018 को खत्म हुए वित्त वर्ष में बैंक में लोगों ने 6.7 फीसदी की दर से पैसे जमा किए. यह 1963 के बाद सबसे कम है.
भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में बैंक का ग्रोथ रेट 6.7 फीसदी रहा. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार यह नोटबंदी की वजह से हो सकता है. इसके साथ ही पिछले कुछ समय से लोगों ने बैंक की बजाय म्युचुअल फंड और अन्य निवेश के विकल्पों में ज्यादा पैसा लगाया है.
नवंबर 2016 में नोटबंदी किए जाने के बाद तकरीबन 86 फीसदी डिपोजिट बैंकों में पहुंची थी. इससे बैंकों के पास काफी बड़ी मात्रा में डिपोजिट जमा हुआ था, लेकिन अब नोटबंदी का उल्टा असर बैंकों पर पड़ता दिख रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद जो पैसा बैंकिंग सिस्टम में आया था, वह अब निकल चुका है.
हाल ही में हुई कैश की किल्लत के लिए भी बैंक से बड़ी मात्रा में पैसों को विद्ड्रॉ करने को ही माना गया था. नोटबंदी के बाद बैंकों ने पुराने नोटों में आई कुल डिपोजिट को 15.28 लाख करोड़ बताया था. इससे मार्च 2017 को खत्म हुए वित्त वर्ष तक बैंकों के पास कुल जमा राशि 108 लाख करोड़ पर पहुंच गई. वहीं, मार्च 2018 तक कुल रकम 117 लाख करोड़ थी. इस दौरान बैंकों में रकम जमा होने की दर 6.7 फीसदी रही.
पहले जो पैसा बैंकों में था, वह पैसा अब यहां से निकल रहा है और म्युचुअल फंड व अन्य निवेश के विकल्पों में लगाया जा रहा है. मार्च, 2017 और मार्च 2018 के बीच म्युचुअल फंड में 22 फीसदी का ग्रोथ देखने को मिला. यह वही वक्त है, जब बैंकों में जमा रकम 5 दशक में सबसे कम रही.
भले ही बैंकों के लिए यह बुरी खबर हो, लेकिन आम आदमी के नजरिये से देखें तो यह एक अच्छी खबर साबित हो सकती है. दरअसल बैंकों में डिपोजिट बढ़ाने के लिए बैंक इन पर मिलने वाली ब्याज दर बढ़ा सकते है. इसका फायदा आम लोगों को मिल सकता है.