मोदी लहर पर सवार होकर मौजूदा कारोबारी साल में देश में 60 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी निवेश (एफडीआई और एफआईआई) आ सकता है. उद्योग संघ एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने एक अध्ययन में यह अनुमान जाहिर किया है. कारोबारी साल 2013-14 में देश में करीब 29 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया था.
एसोचैम के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक को हालांकि इस स्थिति में डॉलर के मुकाबले रुपये में आने वाली मजबूती और महंगाई से निपटने में परेशानी हो सकती है, क्योंकि इस दौरान अर्थव्यवस्था में पूंजी का आधिक्य रहेगा.
अध्ययन में कहा गया है, "इस स्थिति का सबसे पहला समाधान यह हो सकता है कि स्वर्ण आयात पर से रोक और सीमा शुल्क हटाया जाए, क्योंकि ये कदम असामान्य स्थिति में उठाए गए थे, जो पीछे रह गए हैं. स्वर्ण आयात पर रोक से रत्न और आभूषण कारोबार तथा उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. यह कदम मोदी के प्रथम बजट में ही उठाया जा सकता है. इसे जनहितकारी कदम के रूप में देखा जाएगा."
एसोचैम के पेपर 'नई भारतीय सरकार से वैश्विक निवेशकों की उम्मीद' के मुताबिक, "भारतीय शेयर और डेट बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) की अगुआई में शुद्ध विदेशी निवेश अंतर्प्रवाह 2014-15 में बढ़ते हुए 2012-13 के 46.17 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर सकता है, जो विदेशी निवेश के अंतर्प्रवाह की दृष्टि से एक सर्वोत्तम वर्ष था." 2012-13 में एफआईआई का अंतर्प्रवाह 27.58 अरब डॉलर रहा था, जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का अंतर्प्रवाह 19.82 अरब डॉलर था.
अध्ययन के मुताबिक वर्तमान कारोबारी वर्ष में एफआईआई का अंतप्रवाह शेयर और डेट बाजार में 35 अरब डॉलर से अधिक, जबकि एफडीआई अंतप्रवाह 25 अरब डॉलर से अधिक रह सकता है.
अध्ययन के मुताबिक एफडीआई चूंकि लंबे समय का निवेश होता है, इसलिए यह एफआईआई के मुकाबले कम रहेगा.
अध्ययन में यह भी कहा गया कि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा हर महीने अरबों डॉलर की संपत्ति की खरीदारी में की जा रही कटौती का भी विदेशी निवेश के अंतप्रवाह पर विशेष असर नहीं होगा.
एसोचैम द्वारा जारी बयान में अध्यक्ष राणा कपूर ने कहा, "(मोदी) लहर का जरूर लाभ उठाया जाना चाहिए और यहीं से चीजों में बदलाव शुरू होगा."