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ई-कॉर्मस कंपनियों ज्यादा दिन तक नहीं दे सकेंगी भारी डिस्काउंट: बिड़ला

भारतीय ई-कॉमर्स द्वारा भारी डिस्काउंट ऑफर के साथ उत्पादों को बेचने का सिलसिला बाजार में ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा क्योंकि इन कंपनियों में निवेश कर रहे लोग जल्द ही अपने निवेश पर रिटर्न की मांग करने लगेंगे. ऐसा आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है.

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File Image: आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन केएम बिड़ला
File Image: आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन केएम बिड़ला

भारतीय ई-कॉमर्स द्वारा भारी डिस्काउंट ऑफर के साथ उत्पादों को बेचने का सिलसिला बाजार में ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा क्योंकि इन कंपनियों में निवेश कर रहे लोग जल्द ही अपने निवेश पर रिटर्न की मांग करने लगेंगे. ऐसा आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है.

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बिड़ला ने देश में ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारी डिस्काउंट ऑफर के साथ उत्पाद बेचने के चलन पर आश्चर्य जाहिर करते हुए कहा कि इससे ई-कॉमर्स कंपनियों को ज्यादा दिन तक मुनाफा नहीं होगा. बिड़ला ने कहा कि देश में वास्तविक उत्पादन कर अपना उत्पाद सीधे कंज्यूमर को बेचने वाली कंपनियों को भी रीटेल बाजार में ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ लेवल प्लेइंग फील्ड मिलना चाहिए.

बिड़ला ने दावा किया कि इन ई-कॉमर्स कंपनियों में निवेश करने वालों पर एक न एक दिन निवेश पर मिल रहे रिटर्न को बढ़ाने का दबाव बनेगा क्योंकि वह भी एक स्तर तक ही बाजार में कैपिटल प्रवाह कर सकते हैं.

एक अंग्रेजी बिजनेस अखबार को दिए इंटरव्यू में बिड़ला ने कहा 'मुझे हैरत होती है कि ई-कॉमर्स इस तरह से कैसे चलाया जा सकता है. मुझे वैल्यूएशन का खेल पता है. एक दिन इन कारोबार के फाइनैंशल इनवेस्टर को रिटर्न भी चाहिए होगा. लिहाजा यह साफ है कि इन क्षेत्रों में अनलिमिटेड फंडिंग नहीं की जा सकती है. इसे देखते हुए इस मोटे डिस्काउंट वाले मॉडल के टिकाऊ होने पर मेरे मन में सवाल उठता है.

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गौरतलब है कि हाल ही में कोल ब्लॉक आवंटन मामले में दर्ज सीबीआई की एफआईआर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बिडला का नाम आया था. इस मुद्दे पर बोलते हुए बिड़ला ने कहा कि कंपनी इन आरोपों के दबाव से बाहर निकलने में सफल हुई है.

कैसे दे रही हैं ई-कॉमर्स कंपनियां भारी डिस्काउंट
देश में ई-कॉमर्स दिग्गज फ्लिपकार्ट, अमेजन और स्नैपडील एफडीआई नियमों के तहत बायर और सेलर को जोड़ने वाले प्लैटफॉर्म के तौर पर काम कर रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कानून के मुताबिक उन ई-कॉमर्स कंपनियों में एफडीआई की अनुमति नहीं है जो कंज्यूमर को सीधे उत्पाद की बिक्री कर सके. लिहाजा उनकी इंटरनेट साइट एक प्लैटफॉर्म की तर्ज पर काम करती हैं जहां उत्पादक और कंज्यूमर मिल सकें. यह प्लैटफॉर्म पेमेंट, स्टोरेज और डेलिवरी जैसी सर्विसेज भी मुहैया करती हैं. बहरहाल, इंटरनेट प्लैटफॉर्म पर बिकने वाले प्रोडक्ट की कीमत निर्धारित करने के साथ-साथ डिस्काउंट देने का अधिकार उसे नहीं है.

निवेशकों के पैसे से दिया जा रहा है डिस्काउंट
ई-कॉमर्स कंपनियां सेलर द्वारा दिए जा रहे डिस्काउंट को बायर तक प्रमोशनल ऑफर के नाम पर सीधे बढ़ा दे रही हैं. इससे कंज्यूमर को डायरेक्ट रीटेल मार्केट के बजाए इंटरनेट पर प्रोडक्ट सस्ता मिल रहा है और वह तेजी से ऑनलाइन खरीददारी के लिए आकर्षित हो रहे है. ई-कॉमर्स कंपनियां अपने कैपिटल इंवेस्टमेंट से इस डिस्काउंट की भरपाई कर ले रहे हैं.

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