इट्स दि इकोनॉमी, स्टूपिड. बीते कुछ हफ्तों में नोटबंदी और जीएसटी पर विपक्ष के हमलों से सकते में आई मोदी सरकार के लिए लगभग तय हो चुका है कि उसके लिए इकोनॉमी स्टूपिड की स्थिति आ चुकी है. क्या यही कारण है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अब 'विकास' को उसके हाल पर छोड़कर वह तुरुप का इक्का निकालने पर मजबूर है जिससे 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत सुनिश्चित की जा सके? पार्टी ने तय किया है कि अब उसे एक बार फिर सत्ता पर काबिज रहने के लिए रथयात्रा और राम मंदिर का सहारा लेना पड़ेगा.
2014 के आम चुनावों में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों को मुद्दा बनाते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में पार्टी ने देशभर में वोटर को यह यकीन दिला दिया कि कांग्रेस से उलट उसके पास तेज विकास का मॉडल मौजूद है. भाजपा ने लोगों को भरोसा दिलाया कि वह अपने इस मॉडल से आर्थिक हालात में महज 60 महीने में वह कारनामा कर दिखाएगी जो कांग्रेस की सरकारों ने 60 साल में नहीं किया.
मई 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर बड़े और अहम फैसले लिए. मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे फ्लैगशिप प्रोग्राम के साथ-साथ केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधार को गति देने की कोशिश की. इस कोशिश में जहां अर्थव्यवस्था से कालेधन को खत्म करने के लिए नोटबंदी का फैसला लिया गया वहीं पूरे देश के लिए एक टैक्स व्यवस्था जीएसटी को लागू किया गया. इसके बाद हाल ही में अर्थव्यवस्था की नींव माने जाने वाले सरकारी बैंकों की माली हालत सुधारने के लिए सरकारी खजाने से बड़ा सपोर्ट दिया गया.
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हालांकि इन बड़े कार्यक्रमों के साथ-साथ आर्थिक सुधार की इन कवायदों से बीते तीन साल में आर्थिक आंकड़े अपने शीर्ष पर पहुंचे तो जरूर लेकिन चौथे साल में ही आंकड़ों में गिरावट का दौर शुरू हो गया. आर्थिक जानकारों का दावा है कि इन सुधारों के असर से अगले 6 से 8 तिमाही तक आर्थिक आंकड़े और खराब हो सकते हैं. इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी का मानना है कि ऐसा इसलिए होगा क्योंकि ज्यादातर आर्थिक सुधारों का असर 2 से 3 साल के बाद ही अर्थव्यवस्था पर दिखना शुरू होगा, लिहाजा आगामी आम चुनावों के वक्त मोदी सरकार को अर्थव्यवस्था से कोई शुभ समाचार मिलने की उम्मीद बेहद कम है.
ऐसी स्थिति में केंद्र की मोदी सरकार को एक बात पूरी तरह साफ हो चुकी है कि 2019 में प्रस्तावित आम चुनावों के वक्त देश की अर्थव्यवस्था से उसे ऐसे आंकड़े नहीं मिलने जा रहे जिसे वह अपनी उपलब्धि बताकर सत्ता पर दोबारा काबिज हो सके. लिहाजा अब भाजपा की मजबूरी बन चुकी है कि आगामी चुनाव में विपक्ष को पटखनी देने के लिए उसे अपने मूल मुद्दों को एक बार फिर सामने करना पड़ेगा. इसीलिए एक बार फिर राजनीतिक गलियारों से राम मंदिर का नारा बुलंद किया जा रहा है. पार्टी की तरफ से संकेत दिया जा रहा है कि उसकी सरकार 2019 से पहले राम मंदिर के निर्माण को जोर-शोर से शुरू कर देगी.
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इसी दिशा में और आगे बढ़ते हुए भाजपा ने अगले महीने होने वाले गुजरात चुनावों में भी बतौर स्टार प्रचारक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतारा है. वहीं मुख्यमंत्री योगी ने ऐलान किया है कि अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान राम की 100 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा लगाई जाएगी. योगी के सहारे गुजरात में नैया पार कराने को पार्टी ने इतनी अहमियत दी है कि अब वह एक बार फिर पूरे देश में रथयात्रा की कवायद करने जा रही है. भाजपा की यह रथयात्रा फरवरी 2018 में अयोध्या से शुरू होकर रामेश्वरम तक जाएगी. रथयात्रा के इस मंच पर पार्टी की योजना विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत भाजपा से जुड़े सभी संगठनों को शामिल करना है. सनद रहे कि अपने इन कार्यक्रमों से भाजपा एक बार फिर साफ करना चाहती है कि हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े मुद्दे उसके बेहद करीब हैं. वैसे भी अर्थव्यवस्था से उसे यही उम्मीद है कि दि इकोनॉमिक स्टूपिड के भरोसे चुनाव नहीं निकाला जा सकता.