चिदंबरम खुद खुश हैं और यूपीए ने खुद-खुशी नहीं की
वित्त मंत्री चिदंबरम ने केवल सिगरेट, सिगार, चेरूट, विदेशी बाइक, एसयूवी, आलीशान बोट और केवल उन 42 हजार 800 लोगों पर, जो कहते हैं कि हां, केवल हम 1 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाते हैं, उनपर अपना हथौड़ा चलाया है. लेकिन वित्त मंत्री ने अपनी दया औरतों के साथ बच्चों, गरीबों और बुजुर्गों पर भी दिखायी है. अपने 105 मिनट चले लंबे भाषण में वित्त मंत्री की निगाहें लगातार अगले साल होने वाले आम चुनावों पर बनी रहीं और उसी के तहत उन्होंने सभी को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश की.
चिदंबरम ने कहा, अर्थव्यवस्था की चुनौतियां वास्तव में बरकरार हैं. बजट के बाद प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने यह इशारा भी दिया कि बजट ही अंतिम उपाय नहीं है. उन्होंने कहा कि जब वो संसद में बजट पर चर्चा का जवाब देंगे तो कई अन्य उपायों की घोषणा भी की जाएगी. और साथ ही वित्त विधेयक के पास होने के दौरान भी 'कई घोषणाएं की जाएंगी'. अभी हमें विवेक, संयम और धैर्य रखना चाहिए, जिसमें 'धैर्य' सबसे महत्वपूर्ण है.
चिदंबरम ने कहा कि मुझे लगता है कि विकास, मुद्रास्फीति नियंत्रण और निवेश के दृष्टिकोण से 2013-14 का साल 2012-13 से बेहतर होगा. उन्होंने विश्वास जताया कि 2013-14 में जीडीपी की विकास दर कम से कम 6 फीसदी रहेगी और 2014-15 में इसे बढ़कर 7 फीसदी तक हो जाना चाहिए. चिदंबरम ने शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और उससे बढ़कर सुरक्षा को तरजीह देते हुए अपना व्यापक एजेंडा रखा.
चिदंबरम ने कहा कि उम्मीद से प्रेरणा मिलती है. और स्पष्ट रूप से यह यूपीए-2 का अंतिम बजट है और साथ में आखिरी मौका भी जिसमें डेट-रेटिंग डाउनग्रेड से बचा जा सकता था. ऐसा लगता है कि चिदंबरम ने उस भ्रमजाल को हटा दिया है.
उन्होंने सामाजिक क्षेत्रों विशेषकर औरतों, बच्चों और कम आय वाले लोगों पर खर्च बढ़ाया जबकि अमीरों, विलासी चीजों का उपभोग करने वालों और उससे भी ज्यादा उन बेपरवाह लोगों पर लगाम कसी है. साथ ही पूर्वोत्तर की तरफ ध्यान देते हुए ज्यादा सड़कें बनाने की योजना पेश की जिसमें म्यांमार तक सड़कें बनाना भी शमिल है. लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं किया जिससे 'धरती ही हिल उठे'.
वास्तव में सरकार 28 फरवरी से पहले ही 'चुपके से बजट वाले' बहुत सारे काम करती रही है. जिसमें डीजल के दामों में बढ़ोतरी, एलपीजी सब्सिडी में कमी और कई अन्य राजस्व को बढ़ाने वाले कदम हैं. उनके बजट भाषण का वो हिस्सा जिसमें चिदंबरम को पता है कि उनके वोट नुमा ब्रेड के किस तरफ मक्खन लगा है, वो कहते हैं, हमने कुछ आर्थिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली है. माननीय सदस्यों, आपको यह बाद में पता चलेगा कि मैंने उस स्वतंत्रता का लाभ, यूपीए सरकार के सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को फायदा पहुंचाने के लिए किया है.
कम कीमत वाले घरों पर फायदा मिला है, सर्विस टैक्स में लाभ पाने वालों (बढ़ई, प्लंबर और ठेकेदारों, जिनको 2007 से छूट मिलती है) को फिर छूट मिली है.
पुरुषों और महिलाओं को सोने के आभूषणों पर ड्यूटी में छूट दी गई है. हालांकि बुधवार को पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण में साफ कहा गया है कि वास्तव में सोना खरीदने के कारण भारत के चालू खाते को और नुकसान पहुंचा है.
दिल्ली गैंगरेप की पीडि़ता के नाम पर 1000 करोड़ रुपये का निर्भया फंड (शायद यह पहला मौका है जब बजट में किसी अपराध का जिक्र किया गया है) बनाया गया है. साथ ही आप देश में कई और एफएम चैनलों को आते देखेंगे. इसके अलावा 10 हजार से ज्यादा बड़ी आबादी वाले कस्बों में एलआईसी के साथ सरकारी इंश्योरेंस कंपनी के दफ्तर खुलेंगे.
चिदंबरम ने बड़ी ईमानदारी से भारत में कौशल की कमी को पहचाना और इस कुशलता को बढ़ाने को लेकर 10 हजार रुपये नकद देने की घोषणा की. साल 2022 तक 50 करोड़ भारतीयों को कुशल बनाने को लेकर यह आंकड़ा बहुत ही छोटा है. औरतों, युवाओं और गरीबों को लुभावने वादे कर चिदंबरम कहते हैं कि प्रधानमंत्री, यूपीए की मुखिया सोनिया गांधी और सरकार की ओर से मैं उन सभी लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि.... और कैमरा सोनिया गांधी की तरफ जूम हो जाता है.