पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कॉरपोरेट टैक्स घटाने को लेकर चार साल का रोडमैप पेश किया था. उस रोडमैप के मुताबिक, चार साल में कॉरपोरेट टैक्स को धीरे-धीरे घटाया जाना था. उस घोषणा का चौथा साल बीतने जा रहा है, लेकिन नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 5 जुलाई को पेश होने वाले आगामी बजट में इस घोषणा पर अमल को दरकिनार कर सकती हैं. क्योंकि फिलहाल की वित्तीय स्थिति ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रही है.
आयकर विभाग के अनुसार, 8,00,000 कंपनियों में से करीब 100 कंपनियां (0.012%) कुल कॉरपोरेट टैक्स का 40 प्रतिशत योगदान देती हैं. टैक्स देने वालों की हालत बेहद नाजुक है. ऐसे में सरकार इस स्थिति में नहीं है कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी कर सके. बीते फरवरी में सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के लिए 7.6 ट्रिलियन का कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा है.
अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है. 2018 की अंतिम तिमाही में 6.6 के मुकाबले इस साल की पहली तिमाही में यह 5.8 फीसदी पर आ गई है. दिसंबर, 2018 में जारी हुए डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2017-18 में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 10.02 लाख था, जबकि बजट में यह 10.05 रखा गया था.
वित्त वर्ष 2016 में अरुण जेटली ने कॉरपोरेट टैक्स को कम करने के लिए रोडमैप पेश किया था जिसमें कहा गया था कि चार सालों में इसे 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी किया जाएगा. छोटी और मझोली कंपनियों को यह लाभ मिल रहा है लेकिन बड़ी घरेलू कंपनियां और विदेशी कंपनियां अब भी इसके लिए लॉबींग कर रही हैं.
वित्त वर्ष 2017 के बजट में अरुण जेटली ने 5 करोड़ तक की सेल्स वाली छोटी कंपनियों के लिए टैक्स दर घटाकर 29 फीसदी और नई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए 25 फीसदी कर दी थी. वित्त वर्ष 2018 में 50 करोड़ तक के टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए टैक्स दर घटाकर 25 फीसदी कर दी गई. 2019 के बजट में जेटली ने इस कटौती का दायरा बढ़ाकर 250 करोड़ तक के सेल्स वाली कंपनियों को शामिल कर लिया. करीब 99 फीसदी कंपनियां इसके तहत आ गई हैं, लेकिन एक फीसदी बड़ी कंपनियां जिनकी संख्या करीब 7000 है, अब भी 30 फीसदी के कॉरपोरेट टैक्स स्लैब के अंतर्गत आती हैं.
क्या कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जरूरी है?
हाल ही में अंकटाड (The United Nations Conference on Trade and Development) की 2019 की वर्ल्ड इनवेस्टमेंट रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें कहा गया कि दुनिया भर के ग्लोबल फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट का 39 फीसदी एशिया में हो रहा है. पिछले वर्षों में यह 33 फीसदी था. लेकिन इस उल्लेखनीय बढ़त का ज्यादातर फायदा चीन के हिस्से में गया है. कॉरपोरेट लॉबीइस्टों की राय है कि ऐसे निवेश को आकर्षित करने के लिए टैक्स में कटौती एक कारगर हथियार हो सकता है.
बजट के पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को औपचारिक सलाह देने के बाद भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अध्यक्ष विक्रम किर्लोस्कर ने कहा, 'कॉरपोरेट टैक्स को घटाकर अधिकतम 18 फीसदी किए जाने की जरूरत है. इसके साथ ही अतिरिक्त छूट खत्म कर दी जाए तो सरकारी राजस्व को कोई नुकसान नहीं होगा.'
टैक्स कटौती की होड़
1985 से 2018 के बीच ग्लोबल टैक्स रेट औसतन आधे से ज्यादा कम हो गया है. यह 49 फीसदी से अब 24 फीसदी पर आ गया है. जेटली के रोडमैप की घोषणा के बाद 2018 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने जी-20 देशों के बीच कॉरपोरेट टैक्स को न्यूनतम स्तर तक लाने की घोषणा की. इसके बाद अमेरिका ने इसे 35 फीसदी से घटाकर 21 फीसदी कर दिया. फ्रांस ने भी 2022 में इसे 33 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करने का प्लान बनाया है.
कई तरह के सरचार्ज और सेस लगाने के बाद भारत में कॉरपोरेट टैक्स दर करीब 35 फीसदी होती है. 1997 से 2019 तक औसतन कॉरपोरेट टैक्स 34.94 फीसदी रहा है. 2001 में यह अधिकतम 38.95 फीसदी दर्ज हुआ था, जबकि 2011 में न्यूनतम 32.44 दर्ज हुआ था.
इनकम टैक्स के तहत बड़ी घरेलू कंपनियां और विदेशी कंपनियां कॉरपोरेट टैक्स देने के लिए बाध्य होती हैं. घरेलू कंपनियां अपनी कुल आमदनी पर टैक्स देती हैं जबकि विदेशी कंपनियां सिर्फ उन राशियों पर टैक्स देती हैं जो उन्होंने भारत में अर्जित की है.
जेटली ने जिस रोडमैप की घोषणा की थी, उसका चौथा साल पूरा हो रहा है. कॉरपोरेट की तरफ बढ़-चढ़कर मांग की जा रही है कि कॉरपोरेट टैक्स घटाया जाए. वित्त मंत्री घरेलू और विदेशी कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स घटाने की संभावनाओं पर काम करेंगी. हालांकि, सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं है कि राजस्व की स्थिति अच्छी है और कॉरपोरेट टैक्स घटाने की मांग को पूरा किया जा सके.