वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी बैंकों के हित में 'बैड बैंक' बनाने का फैसला किया है. बैड बैंक को डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टिट्यूशन के नाम से जाना जाएगा. बैंकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कदम उठाया है. वित्त मंत्री ने इसके लिए 20 हजार करोड़ रुपए की घोषणा की है. इससे पहले इकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट 2020-21 पेश करने के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने भी बैड बैंक की वकालत की थी.
मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यन ने कहा था कि बैड बैंक बनाने के लिए कई सावधानी रखने की जरूरत है. जैसे कि बैड बैंक की स्थापना निजी क्षेत्र की अगुवाई में हो. इससे उत्पादकता बढ़ेगी. हालांकि सरकार ने इसकी स्थापना सरकारी क्षेत्र की अगुवाई में की है.
इसी महीने रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने संकेत दिया था कि केंद्रीय बैंक संभवत: बैड बैंक के प्रस्ताव पर विचार कर सकता है. बैड बैंक का मतलब ऐसे वित्तीय संस्थानों से है, जो ऋणदाताओं के डूबे कर्ज को लेगा और समाधान की प्रक्रिया आगे बढ़ाएगा.
ऋणदाता काफी समय से बैड बैंक की स्थापना की मांग कर रहे हैं, जिससे इस कठिन समय में उनका डूबे कर्ज का दबाव कुछ कम हो सके. इस तरह के कई बैंक पहले से दुनियाभर में काम कर रहे हैं. फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल में कई साल से बैड बैंक काम कर रहे है. इन बैंकों का काम बैड एसेट्स को गुड ऐसेट्स में बदलना होता है.
आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) ने सितंबर-2020 से सितंबर 2021 के अपने लेटेस्ट फाइनेंसियल स्टेबिलिटि रिपोर्ट में सभी कॉमर्शियल बैंकों के GNPA (ग्रोस नॉन परफॉर्मिंग असेट्स) रेशियो के 7.5% से बढ़कर 13.5% होने की उम्मीद जताई थी. रिपोर्ट के मुताबिक अगर मैक्रोइकोनॉमिक इनवायरमेंट और बिगड़कर गंभीर दबाव वाले परिद्श्य में तब्दील होता है तो ग्रॉस एनपीए (GNPA) रेशियो बढ़कर 14.8 फीसदी हो सकता है.