मानसून की बेरुखी ने एक बार फिर बुंदेलखंड में सूखे के हालात बना दिए हैं, खेतों में फसल तो खड़ी है लेकिन उसमें दाना नहीं आया है, यही कारण है कि कई स्थानों के किसान फसल काटने में श्रम और पैसे खर्च करने की बजाय खेतों को जानवरों के हवाले कर रहे हैं.
बुंदेलखंड मध्य प्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात कुल 13 जिलों को मिलाकर बनता है, इस इलाके की दुनिया में पहचान सूखा, भुखमरी और पलायन के चलते बनी है. बीते दो वर्षो से कम वर्षा के चलते सूखे की मार झेल रहे इस इलाके में इस बार भी औसत से कम बारिश हुई है. किसानों ने अच्छी बारिश की आस में मूंग, उड़द, सोयाबीन व तिल बोई थी, मगर कभी तेज गर्मी और कभी बारिश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छह जिलों में से पांच में कम बारिश हुई है और सरकार ने टीकमगढ़ को तो सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है. वहीं उत्तर प्रदेश में भी कमोबेश यही हालत है, मगर सरकार ने अभी तक किसी जिले को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया है.
एक तरफ राजनीतिक दलों के लिए यहां की समस्याएं राजनीतिक लाभ तलाशने का मुद्दा है, तो किसानों को सुविधाएं मिलती नहीं है, दूसरी ओर प्रकृति उनसे रुठ सी गई है. पिछले तीन वर्षो से इस इलाके में सूखे के हालात हैं, मगर सरकारें कभी भी बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाती है. इसी का नतीजा है कि फसलों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाता है.
इस इलाके का किसान एक बार फिर मुसीबत के भंवर जाल में फंस गया है, अब देखना है कि दोनों राज्यों की सरकारें किस तरह उसे इस मुसीबत से बाहर निकालती हैं या बीते वर्षो के हालात एक बार फिर दोहराए जाते हैं.
इनपुट: IANS