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आर्थिक सुस्ती: एफडीआई ग्रोथ में कमी, देश से बाहर वापस जा रही ज्यादा पूंजी

पिछले हफ्ते ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति को और उदार तथा सरल बनाया गया है. एफडीआई की मात्रा तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसके आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करने पर कई नए तथ्य सामने आते हैं.

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एफडीआई इनफ्लो का ग्रोथ घटा
एफडीआई इनफ्लो का ग्रोथ घटा

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भारत ने 1991 में शुरू उदारीकरण के दौर में अपनी अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए खोला था और उसके बाद से ही इसे हासिल करने के लिए आक्रामक प्रयास किए जा रहे हैं. पिछले हफ्ते ही एफडीआई नीति को और उदार तथा सरल बनाया गया है ताकि देश में कारोबार सुगम हो और एफडीआई प्रवाह बढ़े. एफडीआई की मात्रा तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसके आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करने पर कई नए तथ्य सामने आते हैं.

एफडीआई प्रवाह बढ़ाने के पीछे सोच यह होती है कि देश में निवेश, लोगों की आय और रोजगार को बढ़ाया जाए. लेकिन पिछले वर्षों में इस बात के आकलन की कोशि‍श नहीं की गई कि इस पूंजी का वास्तव में कोई फायदा हुआ है या नहीं और वास्तव में जिस उद्देश्य से एफडीआई को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह पूरा भी हो रहा है या नहीं.

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साल 2008-09 के बाद एफडीआई प्रवाह के ग्रोथ रेट में कमी

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक,  सकल एफडीआई प्रवाह (इक्वि‍टी, फिर से निवेश की गई कमाई और अन्य पूंजी) साल 2000-01 के 17,557 करोड़ रुपये से बढ़कर साल 2018-19 में 4,49,616 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. इसमें इक्विटी का हिस्सा इस दौरान 10,733 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,09,867 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. लेकिन एफडीआई इनफ्लो में सालाना ग्रोथ या ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) के प्रतिशतता के लिहाज से देखें तो 2008-09 के बाद एफडीआई इनफ्लो यानी देश के भीतर आने वाले एफडीआई में भारी गिरावट आई है.

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इसका मतलब यह है कि 2014 के मेक इन इंडिया अभियान से भी इसमें तेजी नहीं आ पाई है. GFCF का मतलब यह होता है कि इकोनॉमी में जो नया धन आया है उसका कितना हिस्सा निवेश किया गया है (उपभोग नहीं), यानी यह निवेश का सूचक होता है.

एफडीआई और एफडीआई इक्विटी इनफ्लो में सालाना बढ़त साल 2016-17 में एक अंक में पहुंच गई और 2018-19 में तो इसमें गिरावट आ गई.

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कुछ और नकारात्मक संकेत

एफडीआई के लिहाज से एक और महत्वपूर्ण ट्रेंड होता है रीपैट्रिएशन और रीइनवेस्टमेंट अर्निंग का, यह वह आय होती है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में वापस आ जाती है. यानी एफडीआई से कोई विदेशी कंपनी अगर भारत से कमाई कर रही है तो वह फिर यहां कितना निवेश कर रही है और एफडीआई से अपनी कमाई का कितना हिस्सा यहां नए सिरे से निवेश कर रही है. इस मामले में दोनों संकेत नकारात्मक हैं. इसका मतलब यह है कि अब ज्यादा से ज्यादा पूंजी बाहर जा रही है और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में एफडीआई के संभावित फायदों का क्षरण हो रहा है.

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साल 2008-09 तक आय का रीपैट्रिएशन काफी कम था, लेकिन यह 2009-10 में यह बढ़कर एफडीआई इक्विटी इनफ्लो के 17.9 फीसदी और 2017-18 में 48 फीसदी तक पहुंच गया. रीपैट्रिएशन बढ़ने का मतलब यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था से ज्यादा पूंजी बाहर जा रही है.

इसी तरह रीइनवेस्टेड अर्निंग 2002-03 में एफडीआई इक्विटी इनफ्लो का 60 फीसदी तक था, लेकिन 2017-18 में यह घटकर महज 28 फीसदी रह गया. इसका मतलब यह है कि कंपनियां ज्यादा से ज्यादा मुनाफा देश से बाहर ले जा रही हैं.

एफडीआई इनफ्लो का क्या फायदा, कम मिलते हैं आंकड़े

एफडीआई हासिल करने का मतलब सिर्फ विदेशी पूंजी हासिल करना नहीं होता है. 1991 की औद्योगिक नीति में तत्कालीन सरकार ने कहा था कि अर्थव्यवस्था को एफडीआई के लिए खोलने के पीछे सोच यह है कि ‘टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, मार्केटिंग एक्सपर्टीज का फायदा मिले, आधुनिक मैनेजेरियल तकनीक हासिल हो और निर्यात को बढ़ावा देने की नई संभावनाएं पैदा हों.'

2017 में जारी एफडीआई स्टेटमेंट भी यह भी कहा गया कि इसमें आर्थिंक तरक्की को बढ़ावा देने की संभावना भी होनी चाहिए. लेकिन सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि ये फायदे भारत को मिले हैं या नहीं. हमेशा बस इसी बात पर जोर दिया गया कि कितनी एफडीआई आ रही है.

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उदाहरण के लिए साल 2013-14 के बजट भाषण में तत्कालीन सरकार ने ईमानदारी से यह बात स्वीकार की थी कि चालू खाते के घाटे (CAD) की भरपाई के लिए एफडीआई जरूरी है. इसके बाद से लगातार यह दावा किया जाता रहा है कि एफडीआई से मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन लोकसभा में कई बार सरकार ने यह स्वीकार किया है कि उसके पास ऐसे दावों को पुख्ता करने वाले कोई आंकड़े नहीं हैं.

एफडीआई का कई दशकों तक स्टडी करने वाले इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के प्रोफेसर चलापति राव ने कहा, ‘इस बारे में जानने की कोई व्यवस्था नहीं है कि देश में एफडीआई से कोई भला हुआ है, खासकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और रोजगार के मसले पर.’  

नीति आयोग की साल 2018 की एक रिपोर्ट न्यू इंडिया@75 में कहा गया है, ‘भारत को यदि दुनिया का वर्कशॉप बनाना है तो हमें मैन्युफैक्चरिंग में एफडीआई को बढ़ावा देना होगा.’  

सर्विस सेक्टर में ज्यादा एफडीआई

एफडीआई इक्विटी इनफ्लो के आंकड़ों से एक और जानकारी सामने आई है कि एफडीआई इक्वि‍टी का बड़ा हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग (34%, ऑटोमोबिल, केमिकल, दवाएं आदि) की जगह सेवाओं (65.4% , वित्तीय सेवाएं, सॉफ्टवेयर, टेलीकम्युनिकेशन, कंस्ट्रक्शन आदि) में आया है.

यही नहीं, मैन्युफैक्चरिंग में आने वाली एफडीआई इक्विटी का करीब आधा हिस्सा मौजूदा कारोबार को खरीदने में जा रहा है, न कि कोई नई क्षमता स्थापित करने में.

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प्रोफेसर राव कहते हैं कि उनके स्टडी से यह पता चला है कि 2004 से 2014 के बीच मैन्युफैक्चरिंग में आए वास्तविक एफडीआई इक्विटी इनफ्लो का करीब 55 फीसदी हिस्सा मौजूदा कारखानों को खरीदने या मौजूदा निवेशकों के अधि‍ग्रहण में लगा है. इससे किसी भी तरह के क्षमता या रोजगार का सृजन नहीं हुआ है.

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