केन्द्र सरकार के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति लगातार आठवें महीने शून्य से नीचे -2.4 फीसदी पर बनी हुई है. उसके उलट खुदरा महंगाई दर आठ महीने के उच्चतम स्तर 5.4 फीसदी पर बनी हुई है. साथ ही देश में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन(आईआईपी) के आंकड़े उम्मीद से खराब रहे और वह अप्रैल के मुकाबले मई 2015 में 3.4 फीसदी से गिरकर 2.7 फीसदी हो गई.
हालांकि मई तक आईआईपी में लगातार आठ महीनों से वृद्धि देखने को मिल रही थी. इसके साथ ही जून में ऑटो सेक्टर में सेल्स पिछले आठ महीनों के मुकाबले सबसे सुस्त रही. इन उलटे-सीधे आंकड़ो ने 4 अगस्त को रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला करना कठिन कर दिया है.
जून में गाड़ियों की बिक्री 8 महीनों में सबसे सुस्त
ऑटो सेक्टर के हाल में आए जून के बिक्री आंकड़े पिछले आठ महीनों में सबसे सुस्त रहे. इस सेक्टर में यह सुस्ती खासतौर पर ग्रामीण भारत में खराब होती स्थिति और ऑटो कंपनियों की बढ़ती लागत के कारण देखने को मिली. जून में महज 1.62 लाख यूनिट गाडियों की बिक्री हुई जबकि पिछले साल इस महीने में 1.6 लाख यूनिय बिक्री हुई थी. इस साल जून में महज 1.5 फीसदी की सेल्स ग्रोथ दर्ज हुई है.
लगातार 8 महीनों से थोक महंगाई दर शून्य से नीचे
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मई में शून्य से 2.36 फीसदी नीचे थी. नवंबर 2014 से यह शून्य से नीचे बनी हुई है. एक साल पहले जून 2014 में यह 5.66 फीसदी थी. गौरतलब है कि सोमवार को आए खुदरा मुद्रास्फीति का आंकड़ा बढ़कर आठ महीने के उच्च स्तर, 5.4 फीसदी पर पहुंच गया.
फूड बास्केट में लगातार दर्ज हो रही गिरावट
पिछले महीने खाद्य कीमतें विशेष तौर पर गेहूं, फल एवं दूध की थोक कीमतों में नरमी रही. कुल मिलाकर खाद्य खंड में थोक मूल्य आधारित मुद्रास्फीति घटकर 2.88 फीसदी पर आ गई जो मई में 3.80 फीसदी थी. सब्जियों की कीमत 7.07 फीसदी घटी और आलू के दाम 52.50 फीसदी घटे. ईंधन एवं बिजली खंड में मुद्रास्फीति जून में शून्य से 10.3 फीसदी नीचे रही. विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति शून्य से 0.77 फीसदी नीचे रही जो पिछले महीने शून्य से 0.64 फीसदी नीचे थी. हालांकि, दालें पिछले महीने के मुकाबले 33.67 फीसदी मंहगी हुईं.
रिजर्व बैंक 4 अगस्त को करेगा मौद्रिक नीति की समीक्षा
केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति की अगली समीक्षा 4 अगस्त को करेगा. आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति संबंधी पहलों के लिए मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर ध्यान देता है. केंद्रीय बैंक ने कहा है कि वह अपनी नीतिगत दरों में किसी तरह के बदलाव से पहले मुद्रास्फीति समेत विभिन्न आंकड़ों और मानसून की प्रगति पर ध्यान रखेगा. गौरतलब है कि पिछले महीने आरबीआई ने रेपो दर 7.5 फीसदी से घटाकर 7.25 फीसदी कर दिया था लेकिन अन्य नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) 4 फीसदी और सांविधिक नकदी अनुपात (एसएलआर) को 21.5 फीसदी पर बरकरार रखा था.
वैश्विक कारणों से भी रिजर्व बैंक पर दबाव
वैश्विक अर्थव्यवस्था के जानकारों का मानना है कि इस साल के अंत तक अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में इजाफा किया जाना लगभग तय है. लिहाजा ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए कटौती करना मुश्किल लग रहा है. हालांकि ईरान और 6 ताकतवर देशों के बीच हुए न्यूक्लियर डील के बाद ईरान पर धीरे-धीरे प्रतिबंध हटने लगेगा और जानकार इसे भारत के लिए बेहतर मान रहे हैं और उम्मीद है कि देश में महंगाई पर लगाम लगेगी. इसके अलावा चीन के बाजार में लगातार जारी गिरावट और सरकार के उठाए गए कड़े कदमों से ग्लोबल मार्केट का सेंटीमेंट खराब चल रहा है. जानकारों का मानना है कि चीन में पहले से मंदी से गुजर रहे रीयल स्टेट सेक्टर के साथ-साथ शेयर बाजार का गुब्बारे की हवा भी निकल रही है.
इन पांच घरेलू कारणों से रिजर्व बैंक टाल सकता है कटौती
कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक आरबीआई द्वारा अगस्त की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं करने की संभावना है.
1. आरबीआई मुद्रास्फीति के और आंकड़े आने का इंतजार करेगा.
2. आरबीआई इसका भी इंतजार करेगा कि पूर्व में हुई कटौती का पूरा फायदा उपभोक्ताओं को पहुंचा या नहीं.
3. थोक और खुदरा महंगाई के आंकड़ों में परस्पर विरोध से मुश्किल हुआ आरबीआई का काम.
4. इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के मई के आंकड़ों में आई गिरावट से नहीं दिख रही मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में तेजी.
5. जुलाई-अगस्त में कमजोर मानसून की भविष्यवाणी से जारी रहेगी आरबीआई की चिंता.