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चीन में राइट टू प्राइवेसी नहीं, पर ऐसे सुरक्षित है आम आदमी की निजता

चीन में निजता का अधिकार नहीं है. निजता तो दूर सामान्य मौलिक अधिकार के लिए भी वहां के नागरिकों को संविधान से कोई गारंटी नहीं है. लेकिन एक बात खास है कि चीन में विदेशी और मल्टीनैशनल कंपनियों के कब्जे में आम आदमी की निजी जानकारियां नहीं हैं.

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बिना मौलिक अधिकार में शामिल किए भी चीन में सुरक्षित है निजता
बिना मौलिक अधिकार में शामिल किए भी चीन में सुरक्षित है निजता

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चीन में निजता का अधिकार नहीं है. निजता तो दूर सामान्य मौलिक अधिकार के लिए भी वहां के नागरिकों को संविधान से कोई गारंटी नहीं है. लेकिन एक बात खास है कि चीन में विदेशी और मल्टीनैशनल कंपनियों के कब्जे में आम आदमी की निजी जानकारियां नहीं हैं.

वहीं भारत में मौलिक अधिकारों की गारंटी 1950 में संविधान बनने के बाद दे दी गई. इन अधिकारों में अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निजता यानी राइट टू प्राइवेसी को भी शामिल कर लिया गया है. इसका मतलब यह है कि किसी भी नागरिक की निजी जानकारी किसी अन्य को सौंपी नहीं जा सकती है.

इस फैसले का असर अब देश में काम कर रही आईटी कंपनियों पर पड़ना तय है. इंटरनेट और स्टार्टअप से जुड़ी कंपनियां जिसमें डिजिटल लेंडिंग और पेमेंट कंपनियां भी शामिल हैं, संबे समय से देश में ग्राहकों के निजी आंकड़ों को एकत्र कर चुके हैं. इसमें देशी कंपनियों के साथ-साथ विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं.

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लिहाजा, कोर्ट के फैसले के बाद अब केन्द्र सरकार को कवायद करनी होगी कि वह इन कंपनियों के पास मौजूद आंकड़ों को सुरक्षित करने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाएं नहीं तो देश में निजता की गारंटी देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.

गौरतलब है कि कंपनियों के पास मौजूद आम आदमी की निजी जानकारी को सुरक्षित करने में देशी कंपनियों को बाध्य किया जा सकता है. लेकिन क्या विदेशी कंपनियों पर भी उनके पास मौजूद निजी जानकारी किसी से शेयर करने पर पाबंदी लगाई जा सकती है? क्या विदेशी कंपनियों को मजबूर किया जा सकता है कि वह देश में किसी भी ग्राहक से उसकी जानकारी बिना इजाजत न मांगें और न ही किसी अन्य से साझा करें. ऐसी कंपनियों में बैंक, ऑनलाइन कॉमर्स समेत सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म जैसे फेसबुक और सर्च इंजन गूगल भी शामिल हैं.

अब सवाल देश में निजता की गारंटी पर. बीते दो दशकों के दौरान इंटरनेट, सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स के क्षेत्र में विदेशी कंपनियों का बोल बाला रहा है. इंटरनेट पर सर्च में गूगल, सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक या ई-कॉमर्स क्षेत्र में अमेजन जैसी कंपनियों के पास बड़ी मात्रा में निजी जानकारियां मौजूद हैं.

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इन जानकारियों को ये विदेशी कंपनियां किसी देश की सरकार के साथ साझा नहीं करती हैं. साझा न करने के पीछे उनकी दलील रहती है कि यह जानकारी उक्त देश के अंदर एकत्र नहीं है लिहाजा सरकारों का उसपर कोई अधिकार नहीं है. खास बात यह है कि इन विदेशी कंपनियों की दलील चीन में काम नहीं आई. चीन सरकार ने गूगल और फेसबुक समेत ई-रीटेल कंपनियों को चीन में कभी पैर पसारने नहीं दिया.

गूगल के जवाब में चीन ने अपने लिए घरेलू सर्च इंजन बायदू को विकसिकत कर रखा है. लिहाजा, गूगल को चीन में आम आदमी की जानकारी एकत्र करने का मौका नहीं मिला. वहीं फेसबुक के जवाब में चीन ने अपने लिए घरेलू सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म वीबो (weibo.com) तैयार कर रखा है. वहीं ई-कॉमर्स के क्षेत्र में इससे पहले अमेजन जैसे मिल्टीनैशनल चीन पहुंचते वहां अलीबाबा को तैयार किया जा सका है.

लिहाजा, एक बात साफ है कि भारत में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार घोषित करने देने से अधिकार की गारंटी नहीं मिल सकती. देश में आम आदमी की ज्यादा से ज्यादा जानकारी पहले से ही मल्टीनैशनल कंपनियों के जरिए देश से बाहर मौजूद उनके सर्वर में मौजूद है. वहीं चीन सरकार ने अपने देश में आम आदमी की जानकारी कभी मल्टीनैशनल कंपनियों का हाथ नहीं लगने दी.

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