डीजल कारों की बिक्री में बड़ी गिरावट दर्ज देखने को मिल रही है. नतीजा ये है कि बाजार में डीजल कारों की मांग 5 साल के न्यूनतम स्तर पर लुढक गयी है.
साल 2012-13 में जंहा डीजल कारों का बाजार पर 47 फीसदी से भी ज्यादा का कब्जा था वही अब गिरकर सीधे 33 फीसदी के आस-पास आकर थम गया है.
फोर्ड, मारूती, होंडा सहित लगभग सभी कम्पनीयों की बिक्री में डीजल करो की बिक्री ढलान पर पहुंच गयी है.
इस सबके पीछे डीजल के दामों में हुई क्रमबद्ध बढ़ोत्तरी को जिम्मेदार मना जा रहा है. जिससे अब पेट्रोल और डीजल के दामो के बीच भी बहुत फासला नहीं रह गया है.
उदाहरण के लिए इससे पहले मारुती कम्पनी की स्विफ्ट के प्रति 7 डीजल मॉडलों के मुकाबले 3 पेट्रोल मॉडलों की ही बिक्री हो पाती थी. पर अब मामला बराबर हो गया है. हर डीजल मॉडल पर एक पेट्रोल मॉडल के बिक्री होने लगी है.
इन सबसे अलग मार्केट विशेषज्ञ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की डीजल कारों पर तिरछी नजर को भी बहुत हद तक जिम्मेदार मान रहे है.
गौरतलब हो कि NGT ने दिल्ली में 10 साल से पुरानी कारो पर प्रतिबंध लगा चुकी है. मतलब साफ़ है कि डीजल करो की उम्र सिर्फ 10 साल ही रह गयी है.