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कैशलेस लेनदेन बैंकों के लिए पड़ रहा भारी, 3800 करोड़ का नुकसान

मोदी सरकार लगातार कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने में जुटी हुई है, लेकिन बैंकों के लिए यह अभियान काफी मुश्किल साबित हो रहा है. एसबीआई रिपोर्ट की तरफ से जारी एक रिपेार्ट के मुताबिक डिजिटल पेमेंट से बैंकों को 3800 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान उठाना पड़ रहा है.

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आपका कैशलेस लेनदेन बैंकों के लिए पड़ रहा भारी
आपका कैशलेस लेनदेन बैंकों के लिए पड़ रहा भारी

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मोदी सरकार लगातार कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने में जुटी हुई है, लेकिन बैंकों के लिए यह अभियान काफी मुश्किल साबित हो रहा है. एसबीआई रिपोर्ट की तरफ से जारी एक रिपेार्ट के मुताबिक डिजिटल पेमेंट से बैंकों को 3800 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान उठाना पड़ रहा है.

बैंकों की जेब पर बढ़ा दबाव

नोटबंदी के बाद से बैंक लगातार कैशलेस लेनदेन के लिए प्वाइंट आॅफ सेल (पीओएस) टर्मिनल्स और मशीनों की संख्या बढ़ाने में जुटे हुए हैं. जहां मार्च 2016 में बैंकों ने 13.8 लाख पीओएस टर्मिनल्स लगाए थे. नोटबंदी के बाद इनकी संख्या लगातार बढ़ी है और जुलाई, 2017 तक 28.4 पीओएस टर्मिनल्स लगाए गए हैं. इसके हिसाब से  बैंक औसतन 5000 पीओएस टर्मिनल्स हर दिन लगा रहे हैं.

कैशलेस लेनदेन में बढ़ोत्तरी

इससे मोदी सरकार के डिजिटल पेमेंट के अभियान को जरूर बढ़ावा मिला है. एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद से डेबिट और क्रेडिट कार्ड के ट्रांजैक्शन में बढ़ोत्तरी हुई है.  अक्टूबर, 2016 में जहां 51,900 करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन हुए. वही जुलाई 2017 तक 68,500 करोड़ के स्तर पर पहुंच गए हैं. इसके अलावा दिसंबर 2016 में सबसे ज्यादा 89,200 करोड़ रुपये के कैशलेस ट्रांजैक्शन हुए थे.

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सिर्फ 900 करोड की हो रही आय  

एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘हमारा अनुमान है कि व्थ्थ्.न्ै ट्रांजैक्शन से  बैंको को 4700 करोड़ रुपये का सालाना नुकसान उठाना पड़ रहा है. जबकि व्छ.न्ै ट्रांजैक्शन से बैंकों का नेट रेवेन्यू 900 करोड़ रुपये हैं. इस तरह उन्हें सालाना 3800 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

ऐसे काम करती है पेमेंट इंडस्ट्री

एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक पेमेंट कार्ड इंडस्ट्री 4 पार्टी माॅडल पर काम करती है. इसमें एक जारी करने वाला बैंक, प्राप्त करने वाला बैंक, कारोबारी और ग्राहक शामिल होता है. पीओएस पर जब कोई ट्रांजैक्शन के दौरान कार्ड जारी करने वाला और प्राप्त करने वाला एक ही बैंक होता है. इसे  व्छ.न्ै ट्रांजैक्शन कहा जाता है. वहीं, जब जारी करने वाला बैंक अलग और प्राप्त करने वाला अलग होता है, तो ऐसे ट्रांजैक्शन को ‘ व्थ्थ्.न्ैष् कहा जाता है.

ऐसे बैंक उठाते हैं खर्च

पीओएस टर्मिनल्स लगाने के लिए बैंकों को इंफ्रास्ट्रक्चर पर लगने वाला खर्च उठाना पड़ता है. इसमें पीओएम टर्मिनल लगाना, क्लियरिंग, सेटलमेंट, कारोबारियों को प्रशिक्षण देना, टर्मिनल प्रबंधन करना और इनकी आपूर्ति करने समेत अन्य चीजों में खर्च करना पड़ता है. बैंकों को मर्चेंट डिस्कांउट रेट और महीने के किराये से आय होती है, जो काफी कम रहता है.

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टेलिकाॅम स्ट्रक्चर हो बेहतर

एसबीआई रिपोर्ट ने सरकार को टेलिकाॅम स्ट्रक्चर को बेहतर करने का सुझाव दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार अगर अपने डिजिटल पेमेंट्स के एजेंडे को सही दिशा में बढ़ाना चाहती है, तो उसे वित्तीय लेनदेन के लिए बेहतर स्पेक्ट्रम की व्यवस्था करनी चाहिए.

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