इंडियन फाइनेंशियल कोड (आईएफसी) का संशोधित मसौदा गुरुवार को जारी किया गया. इसके तहत अब ब्याज दर के निर्धारण में आरबीआई के गवर्नर की अधिकारिक शक्तियां कम की जाएंगी.
अभी तक ऐसा प्रावधान था कि ब्याज दर का निर्धारण आरबीआई गवर्नर द्वारा तकनीकी सलाहकार समिति से राय लेकर तय किया जाता था. लेकिन अब इस नये नियम लागु होने के बाद बहुमत की राय के आधार पर ही दर निर्धारित की जाएंगी. वित्तीय क्षेत्र में सुधार लाने के लिए किये जा रहे इस मसौदे से आरबीआई गवर्नर का वीटो का अधिकार खत्म हो जाएगा.
मौद्रिक नीति समीति (MPS) का गठन
आरबीआई के अध्यक्ष के अलावा इस मौद्रिक नीति कमेटी में कुल पांच सदस्य होंगे. केंद्रीय बैंक में गवर्नर ही प्रमुख होते हैं, इसके बावजूद इस पैनल में उनका कोई योगदान नहीं होगा. कमेटी में आरबीआई बोर्ड का एक कार्यकारी सदस्य, आरबीआई का एक कर्मचारी और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त चार लोग शामिल होंगे. आईएफसी के इस नए संशोधित मसौदे के मुताबिक कमेटी की अगुआई आरबीआई गवर्नर नहीं बल्कि आरबीआई अध्यक्ष करेंगे.
बहुमत से तय होगा ब्याज दर
केंद्र सरकार अब आरबीआई के साथ मशविरा करके हर तीन साल में प्रत्येक वित्त वर्ष के लिए कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर महंगाई लक्ष्य का निर्धारण करेगी. इस मसौदे के तहत प्रत्येक दो साल में एक बार इस पैनल की बैठक जरूर होगी जिसमें फैसला वोटिंग से किया जाएगा. वित्त मंत्रालय आईएफसी विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश कर सकता है. इसके बाद कोड को अंतिम रूप देकर और पुनरीक्षण के लिए कानून मंत्रालय को भेजा जाएगा और उसके बाद मंजूरी के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास ले आया जाएगा.