बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि वह गरीबी और गरीबों के प्रति उनके विचारों का सम्मान करते हैं. लेकिन केंद्र सरकार के एक फैसले ने गरीब और बीमार लोगों के लिए आफत लाने का काम किया है. सरकार ने 108 दवाओं की कीमतों से नियंत्रण हटा लिया है, जिनमें टीबी, कैंसर जैसी बीमारियों की दवाएं शामिल हैं.
जानकारी के मुताबिक, सरकार की ओर से नियंत्रण हटाने के साथ ही कभी सौ और हजार रुपये में मिलने वाली दवाओं के लिए अब हजार और लाखों रुपये वसूले जाएंगे. सरकार ने जिन दवाओं की कीमत से नियंत्रण हटाया है, उनमें टीबी, एड्स, डायबिटीज और दिल की बीमारियों दवाएं शामिल हैं. यानी इन 108 दवाओं की कीमतें अब केंद्र सरकार तय नहीं करेगी.
एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, सरकार के आदेश के बाद दवाओं की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है. उदाहरण के लिए कैंसर की दवा दवा ग्लिवेक की कीमत 8,500 रुपये से बढ़कर 1.08 लाख रुपये हो गई है. ब्लड प्रेशर की दवा प्लाविक्स भी 147 रुपये की बजाय अब 1,615 रुपये में मिलने लगी है.
कहीं राह चलते कुत्ता न काट ले
महंगी होने वाली दवाओं की फेहरिस्त में पागल कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारी रेबीज की दवा कामरैब भी शामिल है. इसकी कीमत पहले 2,670 रुपये थी, जो अब बढ़कर 7,000 रुपये हो गई है. बताया जाता है कि अभी कुछ ही दिनों पहले सरकार ने नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपए) से कुछ दवाओं की कीमतों पर लगे नियंत्रण को हटाने का आदेश जारी किया था. इस साल मई में अथॉरिटी ने निर्देश दिया था कि इन दवाओं की कीमतें घटा दी जाएं. एनपीपीए ने 800 ऐसी दवाओं की सूची बना रखी है, जिन्हें अनिवार्य कहा जाता है और उनके दामों पर नियंत्रण कर रखा है, क्योंकि देश में कुछ गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है.
चार करोड़ से ज्यादा डायबिटीज से पीड़ित
आंकड़ों के मुताबिक, देश में डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या चार करोड़ से भी ज्यादा है. इसी तरह दिल की बीमारियों से पीड़ित लोगों की तादाद भी करीब इतनी ही है. दवा कंपनियां सरकार के इस फैसले से खुश हैं. उनका कहना है कि ये बीमारियां जानलेवा नहीं हैं. कंपनियों का तर्क है कि जब किसी भी चीज के दाम पर नियंत्रण नहीं है तो दवाओं की कीमतों पर भी नियंत्रण नहीं होना चाहिए.
अमेरिका को खुश करने की कवायद
दूसरी ओर, एक सरकारी अधिकारी ने कहा है कि दवाओं की कीमतें अनाप-शनाप ढंग से नहीं बढ़ सकती हैं. सरकार ने एनपीपीए से दवाओं की कीमतें नियंत्रित करने का अधिकार तो ले लिया है, लेकिन उसे अपने पास रखा है. पहले तो वह कंपनियों को समझा-बुझा कर राजी करेगी और अगर वे नहीं माने तो कदम उठाएगी.
दवा की कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध करने वालों का कहना है कि मोदी सरकार ने अमेरिकी लॉबी को खुश करने के लिए ऐसा किया है. पीएम मोदी अमेरिका में वहां की कंपनियों को दिखाना चाहते थे कि वह उनके लिए कुछ बेहतर कर रहे हैं.