देश के लोकतांत्रिक ढांचे में यदि प्रधानमंत्री केन्द्र में सर्वोपरि है तो राज्यों में मुख्यमंत्री सबसे ताकतवर है. इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि 2014 के आम चुनावों में गुजरात से आया देश का सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री चुना और केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बन गई.
मोदी सरकार के बीते तीन साल के कार्यकाल के दौरान देश में आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में जो अहम बदलाव हुए उसका नतीजा आज सामने है. राज्यों के मुख्यमंत्री कमजोर हो चुके हैं और खुद प्रधानमंत्री मोदी देश के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री बन चुके हैं. ऐसा, कहना देश के आर्थिक आंकड़ों का है. बीते तीन साल के दौरान देश में जो अहम आर्थिक फैसले लिए गए उनसे राज्यों की आर्थिक स्थिति न सिर्फ कमजोर हुई है बल्कि उसकी कीमत पर केन्द्र सरकार अधिक मजबूत हो गई है.
बीते तीन साल के दौरान इन अहम आंकड़ों से साफ है कि राज्य सरकारें कमजोर हुई हैं और उसकी कीमत पर केन्द्र मजबूत हुई हैं.
राजकोषीय घाटे से बिगड़ा केन्द्र-राज्य का बैलेंस
राजकोषीय घाटा यानी एक साल में सरकारें कितना खर्च करती है और कितना कमाती हैं. 2014 से पहले तक राजकोषीय घाटा केन्द्र सरकार का सबसे बड़ा सिरदर्द. वहीं राज्य सरकारें अपने खर्च और कमाई में ज्यादा बेहतर तारतम्य बनाकर रखती थीं. लेकिन मौजूदा समय में राज्य और केन्द्र सरकारों द्वारा लिए गए फैसलों से इन आंकड़ों में बड़ा उलटफेर हो चुका है.
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वित्त वर्ष 2004 में सभी राज्यों का सम्मिलित राजकोषीय घाटा 4.3 फीसदी (सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी) था. साल 2013 में यह घटकर अपने न्यूनतम स्तर 2 फीसदी पर पहुंच गया. लेकिन 2015 में यह घाटा बढ़कर 2.5 फीसदी हुआ और वित्त वर्ष 2016 में एक बार फिर यह बढ़कर 3.6 फीसदी पर पहुंच गया. राज्यों के घाटे का यह 13 साल का अधिकतम स्तर है.
वहीं केन्द्र सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए लक्ष्य रखा है कि राजकोषीय घाटे को कमकर 3.2 फीसदी पर ले आए और राजस्व घाटे को 1.9 फीसदी तक सीमित कर ले. वहीं हाल ही में केन्द्र सरकार ने योजना तैयार की है कि अगले पांच साल (2022-23) में वह अपने राजकोषीय घाटे को कमकर 2.5 फीसदी और राजस्व घाटे को 0.8 फीसदी तक पहुंचा ले. मौजूदा समय में केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा 3.5 फीसदी पर आ चुका है और चालू वित्त वर्ष के दौरान कम होकर 3.2 फीसदी पहुंचने का अनुमान है.
ये हैं फैसले और कारण जिसने मोदी को बना दिया सबसे ताकतवर
1. सातवां वेतन आयोग
केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय कर्मचारियों की सैलरी और भत्ते के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी देकर राज्यों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. चालू वित्त वर्ष में इस वेतन आयोग द्वारा केन्द्रीय कर्मचारियों को मिली सौगात को मानक मानकर अब राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों की सैलरी और भत्ते में इजाफा करेंगी. यह काम राज्य सरकारें अपने वित्तीय घाटे को और बिगाड़े बिना नहीं कर सकतीं.
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2. किसान कर्जमाफी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने किसान कर्ज माफी का वादा कर राज्यों के सामने कड़ी चुनौती रख दी है. नतीजा यह रहा कि अभीतक महज दो राज्यों ने किसान कर्ज माफी का ऐलान कर अपने खजाने पर 70 हजार करोड़ रुपये का भार लाद दिया है. अब इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा और पंजाब की सरकारों पर भी किसान कर्ज माफी का दबाव बढ़ रहा है.
3. आधार
पूरे देश में नागरिकों के लिए एक यूनीक आईडी देने के प्रोजेक्ट के तहत केन्द्र सरकार 100 करोड़ से अधिक आबादी को आधार नंबर से जोड़ चुकी है. यह आधार नंबर फिलहाल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के साथ-साथ केन्द्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ आम आदमी तक पहुंचाने का एक मात्र जरिया है.
गौरतलब है कि आधार के आंकड़ों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा होने के साथ आम आदमी की निजता पर भी सवाल खड़ा हो रहा है. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया से राज्य सरकारें अछूती हैं. वहीं आने वाले दिनों में सरकारी स्कीमों का लाभ आम आदमी तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार पूरी तरह से केन्द्र सरकार के आधार आंकड़ों पर निर्भर रहेंगी.
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4. शराब पर लगाम
देश में शराब की खपत ज्यादातर राज्यों (लगभग एक दर्जन) की आमदनी का सबसे बड़ा श्रोत है. हाल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब बेचने पर प्रतिबंध लग चुका है. इसका सीधा असर राज्य सरकारों के राजस्व पर पड़ना तय है. वहीं कुछ राज्यों में शराबबंदी के फैसले से जहां उन राज्यों को राजस्व में नुकसान उठाना पड़ रहा है वहीं शराबबंदी एक चुनावी मुद्दा भी है जिसके चलते आने वाले दिनों में कुछ और राज्य इस दिशा में कदम उठा सकते हैं.
5. जीएसटी
1 जुलाई 2017 से पूरे देश में एक समान कर व्यवस्था (जीएसटी) लागू की जा चुकी है. इस कर व्यवस्था से देश के जिन राज्यों में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर विकसित हो चुका है उन्हें राजस्व का नुकसान होना तय है. इसके लिए ऐसे राज्यों को जीएसटी के बाहर रहते हुए अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए या तो नए करों का सहारा लेना होगा नहीं तो उन्हें कम राजस्व में अपना काम करना होगा. गौरतलब है कि जीएसटी के दायरे में आने वाले करों पर अंतिम फैसला जीएसटी काउंसिल का होगा जिसमें पलड़ा हमेशा केन्द्र के साथ-साथ उन राज्यों का भारी होगा जहां एक ही दल की सरकारें होंगी.