इलेक्टोरल बॉन्ड यानी चुनावी चंदा हासिल करने वाले बॉन्ड एक बार फिर चर्चा और विवाद में आ गए हैं. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी से यह खुलासा हुआ है कि रिजर्व बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने को लेकर सरकार को चेताया था और सरकार ने रिजर्व बैंक की सलाह को दरकिनार कर इसे शुरू किया. आखिर क्या होते हैं ये इलेक्टोरल बॉन्ड और इसे लेकर समय-समय पर क्यों होता रहा है विवाद, इसे विस्तार से समझते हैं.
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क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड
सरकार ने इस दावे के साथ साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं.
भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं. अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के 12 चरण पूरे हो चुके हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा 30.67 फीसदी हिस्सा मुंबई में बेचा गया. इनका सबसे ज्यादा 80.50 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया.
क्यों जारी हुआ था इलेक्टोरल बॉन्ड
चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने पिछले साल इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की है. 2 जनवरी, 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता है.
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड की खूबी
कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता है. ये व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान नहीं खोलती और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता है.
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केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.'
कैसे काम करते हैं ये बॉन्ड
एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बॉन्ड 1000 रुपए, 10000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते हैं. ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता है.
सियासी दल एसबीआई में अपने खातों के जरिए बॉन्ड को भुना सकते हैं. यानी ग्राहक जिस पार्टी को यह बॉन्ड चंदे के रूप में देता है वह इसे अपने एसबीआई के अपने निर्धारित एकाउंट में जमा कर भुना सकता है. पार्टी को नकद भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाता और पैसा उसके निर्धारित खाते में ही जाता है.
KYC नॉर्म का होता है पालन
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और एकाउंट की डिटेल मिलती है. इलेक्टोरल बॉन्ड में योगदान 'किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम' के द्वारा ही किया जाता है. सरकार ने जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड के नोटिफिकेशन जारी करते समय यह भी साफ किया था कि इसे खरीदने वाले को पूरी तरह से नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) नॉर्म पूरा करना होगा और बैंक खाते के द्वारा भुगतान करना होगा.
सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को!
आलोचकों का कहना है कि ये बॉन्ड बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले साबित हुए हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. एडीआर की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण का भी यही तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से कॉरपोरेट और उद्योग जगत को फायदा हो रहा है और ऐसे बॉन्ड से मिले चंदे का 95 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है.
चुनाव आयोग ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा 210 करोड़ रुपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिला है. बाकी सारे दल मिलाकर भी इस बॉन्ड से सिर्फ 11 करोड़ रुपये का चंदा हासिल कर पाए थे. चुनाव आयोग ने इस मामले में चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी.
नहीं कायम हो पाई पारदर्शिता
चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की है. सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा, काले धन पर रोक लगेगी. हालांकि, इस बॉन्ड ने पारदर्शिता लाने की जगह जोखिम और बढ़ा दिया है, यही नहीं विदेशी स्रोतों से भी चंदा आने की गुंजाइश हो गई है.
चुनाव आयोग ने भी अपनी टिप्पणियों में इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी अज्ञात बैंकिंग व्यवस्था के जरिए राजनीतिक फंडिंग को लेकर संदेह जाहिर किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 12 मार्च को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार को नसीहत भी दी थी कि इस बारे में केंद्र सरकार गंभीरता से कदम उठाए. इसके बाद से ही इलेक्टोरल बॉन्ड लगातार सवालों के घेरे में है. राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का सोर्स पता न होने के चलते कॉर्पोरेट चंदे को बढ़ावा मिला. साथ ही विदेश से मिलने वाला धन भी वैध हो गया. इस बॉन्ड के स्रोत का खुलासा करना जरूरी नहीं है.
विदेश से चंदा भी संभव!
इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत करते समय इसे सही ठहराते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.' इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 में बदलाव के द्वारा लाए गए थे. वास्तव में इनसे पारदर्शिता पर जोखिम और बढ़ा है. खुद चुनाव आयोग ने इन बदलावों पर गहरी आपत्ति करते हुए कानून मंत्रालय को इनमें बदलाव के लिए लेटर लिखा है.
सरकार का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में योगदान 'किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम' के द्वारा दिया जाता है. सरकार का यह भी तर्क है कि इन बॉन्ड को एक रैंडम सीरियल नंबर दिए गए हैं जो सामान्य तौर पर आंखों से नहीं दिखते. बॉन्ड जारी करने वाला एसबीआई इस सीरियल नंबर के बारे में किसी को नहीं बताता.
चुनाव आयोग के जांच दायरे से बाहर
लेकिन उक्त सारे प्रावधानों से भी समस्याएं दूर नहीं होतीं. चंदा देने वाली की गोपनीयता और राजनीतिक फंडिंग में अपारदर्शिता बनी रहती है और यह सब चुनाव आयोग की जांच के दायरे से भी बाहर है. केवाईसी होने के बाद भी चंदा देने वाले के बारे में सिर्फ बैंक या सरकार को जानकारी हो सकती है, चुनाव आयोग या किसी आम नागरिक को नहीं.
जनप्रतिनिधित्व कानून (RP Act) की धारा 29 सी में बदलाव करते हुए कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के द्वारा हासिल चंदों को चुनाव आयोग की जांच के दायरे से बाहर रखा जाएगा. चुनाव आयोग ने इसे प्रतिगामी कदम बताया है. चुनाव आयोग ने कहा कि इससे यह भी नहीं पता चल पाएगा कि कोई राजनीतिक दल सरकारी कंपनियों से विदेशी स्रोत से चंदा ले रही है या नहीं, जिस पर कि धारा 29 बी के तहत रोक लगाई गई है.
अब तक 6,128 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए
पिछले साल से अब तक देश के 16 राज्यों में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा 12 चरणों में कुल 6,128 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल (चुनावी) बॉन्ड बेचे गए हैं. इसमें से सबसे ज्यादा 1879 करोड़ रुपये के बॉन्ड मुंबई में बेचे गए हैं. दिल्ली में सबसे ज्यादा 4,917 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड इनकैश हुए यानी भुनाए गए हैं. रिटायर्ड कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दाखिल RTI आवेदन के जवाब में यह जानकारी मिली है.
अब क्या है राजनीतिक विवाद
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर एक बार फिर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है. आरटीआई से ही यह खुलासा हुआ है कि रिजर्व बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने को लेकर सरकार को चेताया था. रिजर्व बैंक ने कहा था कि इस तरह के साधन जारी करने वाले अथॉरिटी को प्रभाव में लिया जा सकता है. इसकी वजह से इसमें पारदर्शिता पूरी तरह से नहीं रखी जा सकती. यह मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को कमजोर करेगा. इस पर हमलावर रुख अपनाते हुए कांग्रेस ने बीजेपी से यह मांग की है कि वह यह जानकारी सार्वजनिक करे कि उसे इलेक्टोरल बॉन्ड से कितना चंदा मिला है.