वित्त मंत्री पी चिदंबरम का पिटारा खुलने ही वाला है. चुनाव में जाने से पहले सरकार इस बजट के जरिए देश का दिल जीतने की कोशिश करेगी तो बुरी तरह कर्ज में डूबी जनता भी राहत के लिए टकटकी लगाए हुए है. लेकिन आखिर चिदंबरम के सामने चुनौतियां क्या हैं?
चुनौती बजट से बंगला दिलाने की. चुनौती चोरी-चोरी चुपके-चुपके चपत ना लगाने की. चुनौती टैक्स कम हो तो खुश हों हम. और चुनौती सारे जहां से महंगा का मुहावरा पलटने की.
पहली चुनौती बजट दिलाएगा बंगला
मगर ये घर अजीब है, जमीन के करीब है, ये ईंट पत्थरों का घर, हमारी हसरतों का घर. कहीं खुशियों का खज़ाना है घर, कहीं सपनों का ठिकाना है घर. कभी घर में खुशियां, कभी खुशियों में घर बसाते हैं. हमारे लिए बस मकान नहीं, हर अहसास का ठिकाना है घर.
अपना घर हर किसी का ख्वाब है पर सालों से अधूरी इमारतों में आशियाने का सपना दम तोड़ रहा है. कीमतें गगनचुंबी इमारतों से ऊंची हो चुकी हैं और कहीं तैयार मकानों को खरीदारों का इंतज़ार है. तो क्या 2013 का बजट इन आशंकाओं को दूर करेगा? क्या घर का सपना हकीकत बनेगा? क्या रियल एस्टेट को मिलेगी एक नई ज़िंदगी?
चाहे आप घर खरीदने का सपना संजों रहे हों या फिर इस साल मिलने वाले घर को सजाने की तैयारी कर रहे हों. आम बजट से आस होगी ही. यूं तो फिज़ां चुनावी है. लोकप्रियता की चाशनी गाढ़ी होगी, पर जब सवाल गाढ़ी कमाई का हो तो उम्मीदें भी सटीक होती हैं.
होम लोन ब्याज पर टैक्स छूट की सीमा अभी 1.5 लाख है. मांग है कि इसे बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जाए ताकि दोगुनी राहत देखकर करदाता घर का सपना हकीकत बनाने की हिम्मत कर सकें. इससे ना सिर्फ खरीददारों को फ़ायदा होगा, बल्कि बेचने वालों को भी. घरों की कीमतें करोड़ों में पहुंच चुकी हैं और लोन लाखों में पर नियम अभी भी दस साल पुराने.
घर में आने वाला हर मेहमान अगर आपकी हैसियत मापता है तो ड्रॉइंग रूम के पैमाने में. दीवारों पर कैसी पेंट है, टीवी का साईज़ और ब्रांड क्या है. सोफ़ों की फ़िनिश कैसी है पर घर की कीमत की ही तरह इन सभी चीज़ों की कीमतों में भी आग लगी है. खैर ये चीज़ें तो एक ओर हैं, पिछले दो साल में घरों की निर्माण सामग्री में पचास प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है.
डेवलपर्स को आईडीसी-ईडीसी के तौर पर मोटी रकम चुकानी पड़ रही है, सो अलग और लाइसेंसिंग और लैंड यूज़ चेंज कराने पर भी भारी फीस देनी पड़ती है. इसका सीधा असर घर की कीमत पर पड़ा है.
अच्छी खबर ये है कि इस दफ़ा सरकार अफोर्डेबल हाउसिंग के लिए कच्चे माल की कीमतों पर सब्सिडी देने पर विचार कर सकती है. ये सारे कदम सीधे आम आदमी को फायदा पहुंचा सकते हैं.
2013 में 5 लाख लोगों को मिलेगा घर
बजट से उम्मीद एक तरफ़ है. दूसरी तरफ है इस साल बनने वाला एक नया रिकॉर्ड. ये है गृह प्रवेश का कीर्तिमान. 2013 में साढ़े चार से 5 लाख लोगों को लंबे इंतज़ार के बाद अपने घरों का पोज़ेशन मिलेगा. 2012 में ढाई लाख लोगों को घरों का पोज़ेशन मिला था. 5 लाख घरों का ये आंकड़ा 2013 को डिलीवरी का अबतक का सबसे बड़ा साल बना देगा.
शायद इस साल आप भी उन 5 लाख लोगों में हों, जो अपने बेडरूम में, अपने बिस्तर पर पांव पसार कर सो सकेंगे. चैन की नींद इस बिस्तर पर तभी आएगी, जब आपको आपका घर वादे की मियाद में मिला हो, नहीं तो आपको भी मालूम है कि इसमें नफ़े से ज़्यादा नुकसान है.
सच्चाई तो ये है कि जिन लोगों को इस साल घर सौंपे जाएंगे, उनमें से ज़्यादातर से वादा 7 साल पहले किया गया था. यूं तो वादा ये होता है कि 3 साल के भीतर घर मिल जाएगा पर ग्राहक बस महीनों को सालों में तब्दील होता देखते रहते हैं. पेनाल्टी इतनी मामूली है कि बिल्डर को बहुत ज़्यादा फ़र्क भी नहीं पड़ता और इसीलिए बजट सत्र की सबसे बड़ी उम्मीद है इसमें पेश होने वाला रियल एस्टेट रेगुलेटर बिल.
ये बिल इस बार बजट सत्र में पेश होगा और इसके पास होने की भी पूरी उम्मीद है. रेगुलेटर के आने से डेवलपर्स की मनमानी शर्तों पर लगाम लगाने वाला कोई होगा. उन्हें वक्त पर घर का पोज़ेशन देना होगा. ऐसा ना करने पर उनपर भारीभरकम पेनाल्टी लगाई जा सकेगी.
घर समय पर मिलने की उम्मीद तो रियल एस्टेट रेगुलेटर के बूते की जा सकती है लेकिन घरों की आसमान छूती कीमतों को काबू में करने के लिए भी बजट में कदम उठाने होंगे.
दिल्ली या किसी भी मेट्रो में घर का सपना तो बहुत महंगा है. आसपास के इलाके में भी अगर आप घर ढूंढें तो 1000 स्क्वैयर फीट का एरिया का एक टू बेडरूम फ़्लैट आपको औसतन 50 लाख का मिलेगा. दिक्कत ये है कि परिभाषा के मुताबिक 25 लाख तक की कीमत वाले घर ही अफॉर्डेबल हाउसिंग के दायरे में आते हैं. जिसके लिए आप 15 लाख तक का लोन लेंगे तो ब्याज दर में 1 फीसदी की छूट मिलेगी पर ऐसा घर मिलेगा कहां. कम से कम किसी मेट्रो शहर या उसके आसपास तो बिलकुल भी नहीं.
सरकारी हकीकत कागज़ी है और बढ़ती हुई शहरी आबादी को देखते हुए इसे जल्द से जल्द असलियत में ढालने की ज़रूरत है इसीलिए मांग है कि अफॉर्डेबल घरों की कीमत का दायरा बढ़ाया जाए. इन पर मिलने वाली टैक्स छूट में इज़ाफा हो. इसे इंफ्रारस्ट्रक्चर स्टेटस मिले. ताकि आसानी से रियायती दरों पर लोन मिल सके.
एक तरफ़ महंगे घर की चिंता है. दूसरी तरफ़ उस महंगे से घर का ये रोज़ महंगा होता डाइनिंग रूम. खैर, घर तो तब भरेंगे, जब घर होगा. और तब भी जब पोज़ेशन मिलने के बाद जेब में पैसे भी बचे हों. यही वजह है कि फ़रवरी की आखिरी तारीख का इंतज़ार इतनी शिद्दत से हो रहा है.