वर्ष 2010-11 के रेल बजट से कोई सप्ताह भर पहले प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने रेल मंत्री ममता बनर्जी से मांग की है कि वह नई ‘खानपान नीति’ घोषित करते समय इस कार्य में स्थानीय लोगों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चत करें.
पाटकर ने कहा, ‘भारतीय रेलवे द्वारा लागू वर्तमान खानपान नीति में भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) का निविदा प्रक्रिया में एकाधिकार है. नई नीति में रेलवे को चाहिए कि वह इस प्रक्रिया में अधिक से अधिक स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करे.’
दूसरी ओर, रेलवे सूत्रों का कहना है कि रेल मंत्री ममता बनर्जी द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने वाले रेल बजट में नई खानपान नीति की घोषणा की जाएगी अथवा नहीं, यह अभी तय नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि यह अब से किसी वक्त भी आ सकती है. सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का आरोप है कि रेलवे की वर्तमान ‘खानपान नीति’ में निहित स्वार्थी लोग निविदाओं में अनाप-शनाप दर भरकर प्रक्रिया में अड़ंगा लगाने का प्रयास करते हैं, ताकि इसमें देरी हो और इस बीच वे संबंधित अधिकारियों को प्रभावित कर सकें.
इस बारे में पूछने पर आईआरसीटीसी भोपाल में पदस्थ मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि रेलवे बोर्ड ने नई निविदाएं आमंत्रित करने से मना करते हुए कोई लिखित निर्देश जारी नहीं किए हैं. उन्होने कहा कि नई खानपान नीति पर रेल मंत्री विचार कर रही हैं और यह नीति कभी भी आ सकती है.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में रेल मंत्री ने भारतीय रेलवे पर ‘श्वेतपत्र’ पेश करते वक्त कुछ ऑपरेटरों द्वारा खानपान लाइसेंस झटक लेने के मसले पर कहा था, ‘खानपान लाइसेंस में एकरूपता लाने और स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इस व्यवस्था की समग्र समीक्षा की जरूरत है.’ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने रेल मंत्री ममता बनर्जी से वर्तमान खानपान नीति के कारण रेलवे स्टेशनों से हटाए गए लोगों के पुनर्वास की भी मांग की है. उन्होने कहा कि रेलवे का काम केवल लाभ कमाना ही नहीं है, बल्कि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना भी है.