वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी विकास दर 6.3 फीसदी की दर से बढ़ी है. दूसरी तिमाही में जीडीपी में हुई इस वृद्धि के लिए 10 से भी ज्यादा सेक्टर और सरकारी विभागों के आंकड़े जुटाए गए हैं.
दूसरी तिमाही में जीडीपी का जो आंकड़ा पेश किया गया है. यह आंकड़ा खरीफ सीजन के दौरान कृषि उत्पादन समेत कई सेक्टर से लिये गए आंकड़ों के आधार पर है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जीडीपी का अनुमान जारी करने के लिए कई सेक्टर से आंकड़े जुटाए हैं. इसमें से 10 अहम सेक्टर ये हैं.ये हैं प्रमुख सेक्टर
- कृषि उत्पादन
- बीएसई और एनएसई पर लिस्टेड कंपनियों का रिजल्ट
- इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंडेक्स
- केंद्र सरकार का मासिक बही खाता.
- राज्य सरकारों की तरफ से किया गया खर्च
- रेलवे, रोड और हवाई व जल परिवहन का प्रदर्शन
- बैंकिंग सेक्टर का प्रदर्शन
- कम्युनिकेशन सेक्टर के प्रदर्शन ने भी इसमें अहम किरदार निभाया है
- इंश्योंरेंस सेक्टर के प्रदर्शन को भी इसमें शामिल किया गया है.
- कॉरपोरेट सेक्टर के प्रदर्शन को भी जीडीपी आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए लिया गया है.
टैक्स डाटा जीएसटी के आधार पर हुआ तैयार
जुलाई में नई टैक्स नीति जीएसटी लागू कर दी गई थी. इसके बाद जीडीपी का अनुमान लगाने के लिए जो कुल कर आय शामिल की गई है. वह केंद्रीय उत्पाद और शुल्क बोर्ड (CBEC) की तरफ से सौंपे गए जीएसटी आय और गैर-जीएसटी आय के डाटा के आधार पर तैयार किया गया है.
क्या है जीडीपी
जीडीपी अथवा सकल घरेलू उत्पाद किसी भी देश की आर्थिक सेहत मापने का पैमाना होता है. भारत में जीडीपी की गणना हर तिमाही पर होती है. भारत में जीडीपी दर तय करने के लिए तीन अहम घटक होते हैं. इसमें कृषि, उद्योग और अन्य सेवाएं शामिल होती हैं. किसी भी देश की जीडीपी की रफ्तार उस देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बयां करते हैं. किसी खास अवधि के दौरान आदान-प्रदान में होने वाले पैसों के लेनदेन को ही जीडीपी के आंकड़े मापते हैं.
अर्थव्यवस्था का हालचाल सुनाती है जीडीपी
बोलचाल की भाषा में कहें तो जीडीपी के आंकड़े बढ़ने का मतलब है कि देश की आर्थिक विकास दर में बढ़ोतरी हुई है. अगर जीडीपी की दर कम है, तो इसका मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था की माली हालत कुछ ठीक नहीं है.