रिजर्व बैंक ने जालान समिति की सिफारिशों को मंजूर करते हुए केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपये देने का फैसला किया है. हालांकि, समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद यह खुलासा हुआ है कि सरकार इतने ही रकम से संतुष्ट नहीं थी. सरकार करीब 55 हजार करोड़ रुपये की रकम और चाहती थी, लेकिन जालान समिति ने 1.76 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रकम की सिफारिश करने से इनकार कर दिया.
गौरतलब है कि जून 2018 तक रिजर्व बैंक के बहीखाते में 36.17 लाख करोड़ रुपये की रकम थी. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार समिति में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि ने रिजव बैंक के कुल फंड का 1.5 फीसदी और रकम देने की मांग की थी, जो करीब 54,255 करोड़ रुपये थी.
यह मांग ऊंचे जोखिम वाले सहनशक्ति दायरे में आती थी, इसलिए बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने इसे मानने से इनकार कर दिया. बिमल जालान समिति का ही काम यह तय करना था कि रिजर्व बैंक अपने फंड का कितना हिस्सा सरकार को दे सकती है.
रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने सोमवार को ही समिति की सिफारिशों को मंजूर कर लिया और इसके एक दिन बाद मंगलवार को समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया. समिति ने सिफारिश की है कि बहीखाते के 4.5 से 5.5 फीसदी तक मौद्रिक और वित्तीय स्थिरता प्रावधान को सेफ रेंज माना जा सकता है, लेकिन वित्त सचिव राजीव कुमार का कहना था कि यह 3 फीसदी तक रखी जा सकती है. केंद्र सरकार ने इस साल 30 जुलाई को ही राजीव कुमार को जालान समिति का सदस्य बनाया था.
रिजर्व बैंक का बहीखाता हो मजबूत
जालान समिति ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक का बहीखाता मजबूत होना चाहिए ताकि वह जरूरत पड़ने पर बैंकों की मदद कर सके. समिति ने यह भी सुझाव दिया कि रिजर्व बैंक को अपने एकाउंटिंग वर्ष को बदलकर वित्त वर्ष के मुताबिक अप्रैल से मार्च तक करना चाहिए. अभी रिजर्व बैंक की एकाउंटिंग जुलाई से जून तक के वर्ष की होती है.
जालान समिति यह चाहती थी कि रियलाइज्ड इक्विटी (कॉन्टिजेंसी फंड या आपात निधि) और रीवैल्युएशन बैलेंसेज (CGRA) में स्पष्ट विभाजन हो. सभी तरह के जोखिम से आपात निधि से निपटा जाए और रीवैल्यूएशन बैलेंस को सरकार को न दिया जाए. समिति ने कहा कि आपात निधि रिजर्व बैंक के बहीखाते के 6.5 से 5.5 फीसदी तक होनी चाहिए.
रिजर्व बैंक ने आपात निधि को 5.5 फीसदी तक तय कर दिया. इसकी वजह से सरकार को 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त रकम मिल गई. इसके अलावा रिजर्व बैंक का 1,23,414 करोड़ रुपया का पूरा शुद्ध लाभ यानी सरप्लस भी सरकार को देने का निर्णय लिया गया.