3,250 करोड़ के लोन मामले में वीडियोकॉन को फेवर करने के आरोपों का खारिज करते हुए आईसीआईसीआई बैंक ने सीईओ चंदा कोचर का बचाव किया है. बैंक की ओर से कहा गया है कि बैंक का कोई भी व्यक्ति अपने पद पर इतना सक्षम नहीं है कि बैंक की क्रेडिट से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर सके.
शेयर बाजार को भेजी सूचना में निजी क्षेत्र के बैंक ने कहा कि बोर्ड ने ऋण मंजूरी की बैंक की आंतरिक प्रक्रियाओं की भी समीक्षा की है और उन्हें ठोस पाया है. एक वेबसाइट पर कुछ खबरों में वीडियोकॉन समूह को कर्ज देने में कोचर और उनके परिवार के सदस्यों की भूमिका बताई गई है. इन खबरों में यह भी कहा गया था कि कोचर के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई के लिए शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को भेजी गई है.
वीडियोकॉन के इन्वेस्टर अरविंद गुप्ता ने चंदा कोचर पर मॉरीशस और केमेन आइलैंड जैसे टैक्स हैवेन देशों में स्थित कंपनियों के जरिए वीडियोकॉन को लोन देने का आरोप लगाया था. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर इस तरह की अफवाहें चल रही थीं, जिसमें कहा जा रहा था कि एक प्राइवेट बैंक की हाई रैंकिंग एक्जीक्यूटिव ने कर्ज में डूबे वीडियोकॉन ग्रुप के लोन को स्वीकृति दी है.
गुप्ता ने आरोप लगाया था कि चंदा कोचर के पति दीपक कोचर ने इस लेन-देन में गलत तरीके से काफी फायदा कमाया. दीपक कोचर नूपावर रीन्यूएबल ग्रुप के मालिक हैं. गुप्ता के मुताबिक कोचर के नेतृत्व वाले आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड को 3,250 करोड़ का लोन दिया था.
इसके साथ ही गुप्ता ने अपने ब्लॉग में कहा है कि 2008 में वीडियोकॉन के चीफ वेणुगोपाल ने 50:50 की साझेदारी में नूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाई थी.
हालांकि अब आईसीआईसीआई बैंक ने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि नूपावर रिन्यूएबल्स एनर्जी का कोई भी इन्वेस्टर आईसीआईसीआई बैंक का कर्जदार नहीं है.
बैंक ने कहा, 'बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि कथित अफवाहों में लाभ के लिए कर्ज देने या हितों के टकराव का जो आरोप लगाया गया है, उसका सवाल ही नहीं उठता.'
बोर्ड ने बैंक की प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंदा कोचर पर पूर्ण भरोसा जताया है. इसमें यह भी कहा गया है कि ये अफवाहें बैंक और उसके शीर्ष प्रबंधन को बदनाम करने के लिए फैलाई जा रही हैं.
वीडियोकॉन समूह को कर्ज के बारे में बैंक ने कहा है कि यह ऋण बैंकों के गठजोड़ की व्यवस्था के तहत दिया गया था.
बैंक ने कहा कि इस गठजोड़ में आईसीआईसीआई प्रमुख बैंक नहीं था. बैंक ने सिर्फ अपने हिस्से की ऋण सुविधा दी जो करीब 3,250 करोड़ रुपये बैठती है. यह अप्रैल, 2012 में गठजोड़ की कुल ऋण सुविधा का 10 प्रतिशत से भी कम बैठता है.