अहमदाबाद का भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) आईआईएम संस्थानों को एक बड़े निकाय के अंतर्गत लाने से संबंधित प्रस्तावित कानून के विरोध में खुलकर सामने आ गया है और उसने कहा है कि इस कानून के अमल में आने से उसकी स्वायत्तता सीमित होगी.
आइआईएम अहमदाबाद की संचालन परिषद के अध्यक्ष ए एम नाईक ने कहा कि आईआईएम संस्थानों को एक बड़े निकाय के अंगर्तत लाने से संबंधित प्रस्तावित कानून से संस्थान को वैश्वीकरण के अगले दौर में ले जाने का प्रयास धीमा हो जाएगा.
प्रस्तावित कानून में आईआईएम को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा देने, उन्हें डिप्लोमा के बजाय डिग्रियां प्रदान करने के अधिकार देने, आईआईटी परिषद की तर्ज पर आईआईएम परिषद की स्थापना करने का प्रावधान है तथा इससे आईआईएम बोर्ड में अधिक सरकारी निदेशकों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा.
जब भी सरकारों ने इस प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान को सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास किया, उसने अपने दर्जे को संरक्षित रखने के लिए संघर्ष शुरू किया. नाईक ने कहा, ‘हम विभिन्न आईआईएम से विकल्प चुनने के लिए कह रहे हैं कि क्या वे सरकारी निकाय के अंतर्गत आना चाहते हैं और डिग्रियां बांटना चाहते हैं या वे जैसे स्वायत्त हैं वैसे स्वायत्त बने रहना चाहते हैं और डिग्रियां नहीं देंगे एवं आज वे जैसा कर रहे हैं (डिप्लोमा दे रहे हैं) वैसा करते रहेंगे.’
लार्सन एंड टुब्रो के भी प्रबंध निदेशक नाईक ने कहा, ‘हम कह चुके हैं कि हम बिना डिग्री भी अपना काम चला सकते हैं क्योंकि आईआईएमए ब्रांड डिप्लोमा के साथ भी अपने आप में बहुत बड़ी बात है और इसकी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में गिनती होती है.’
उन्होंने कहा कि हम आईआईएमए को अधिकाधिक अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश कर रहे हैं और यह संस्थान दुनिया के प्रथम 25 संस्थानों की सूची में शामिल है. उन्होंने कहा, ‘मैं एक वैश्विक बोर्ड चाहता हूं जहां दुनियाभर से चार सदस्य हों. मैं पहले ही हावर्ड विश्वविद्यालय से प्रो. श्रीकांत दातार को बोर्ड में ला चुका हूं. मैं और लोगों को लाना चाहता हूं.’
नाईक ने कहा, ‘बोर्ड में सरकारी निदेशकों के बहुमत में होने से अंतरराष्ट्रीय निदेशकों को लाने की कोई गुजाइंश नहीं बचेगी. अंतत: जो कुछ बचेगा, उसमें केवल और निदेशकों के लिए स्थान होगा.’ उन्होंने कहा, ‘मैं अंतरराष्ट्रीय शिक्षक लाने का भी प्रयास कर रहा हूं. इन सभी बातों के बीच में, आईआईएम को अधिक नियंत्रण में लाने एवं उन्हें वृहत सरकारी निकाय के अंतर्गत लाने से यह प्रक्रिया धीमी होगी.’
सूत्रों ने कहा है कि कुछ नये आईआईएम प्रस्तावित कानून पर सहमत हो गए हैं क्योंकि उन्हें सरकारी धन मिल रहा है जबकि आईआईएमए धन के लिए सरकार पर निर्भर नहीं है. नाईक ने कहा, ‘नये आईआईएम को अपना ब्रांड बनाने के लिए डिग्रियां शुरू करने की जरूरत है जबकि आईआईएमए के पास पहले से बहुत ऊंचा ब्रांड है और दुनियाभर में सैकड़ों मुख्य कार्यकारी अधिकारी यहां के छात्र रह चुके हैं.’
इसी बीच आईआईएमए के शिक्षकों ने भी इस कानून का विरोध किया है और कहा है कि इससे संस्थान की स्वायत्तता प्रभावित होगी. संस्थान के सूत्रों ने बताया कि आईआईएमए निदेशक डा. समीर बरूआ को अपनी राय देते हुए शिक्षकों ने इस कदम का जोरदार विरोध किया है. उसने इस कदम पर राय मांगी गयी थी.