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वो कारोबारी ​जिसने बनाया भारत का इनकम टैक्स ढांचा, मौत के बाद भुला दिया गया

आज यानी 24 जुलाई को इनकम टैक्स डे है. इस अवसर पर उस शख्सियत के जीवन के कई अहम पहलू पेश हैं, जिसे भारत में बजट और इनकम टैक्स व्यवस्था का जनक कहा जाता है.

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जेम्स विल्सन को भारत में बजट और इनकम टैक्स सिस्टम का जनक माना जाता है
जेम्स विल्सन को भारत में बजट और इनकम टैक्स सिस्टम का जनक माना जाता है

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  • विल्सन को भारत में बजट-इनकम टैक्स सिस्टम का जनक कहा जाता है
  • स्कॉटलैंड में जन्मे इस कारोबार-अर्थशास्त्री की कलकत्ता में हुई थी मौत

जेम्स विल्सन (James Wilson) स्कॉटलैंड के कारोबारी, अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने द इकोनॉमिस्ट जैसी मशहूर पत्रिका, चार्टर्ड बैंक की स्थापना की थी. उन्हें भारत में बजट और इनकम टैक्स सिस्टम का जनक कहा जाता है. लेकिन इस प्रख्यात अर्थशास्त्री की जब कलकत्ता (अब कोलकाता) में मौत हुई तो उन्हें सामान्य व्यक्ति की तरह दफना दिया गया और लोग भूल गए.

एक टैक्स अधिकारी ने खोजी कब्र

टैक्स के इतिहास को लेकर जुनूनी की तरह रिसर्च करने वाले इनकम टैक्स विभाग के एक जॉइंट कमिश्नर सीपी भाटिया ने साल 2007 में कोलकाता में उनकी कब्र तलाश ली और एक बार फिर से उनकी उपलब्धियों को दुनिया के सामने प्रचारित किया.

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स्कॉटलैंड में जन्म

जेम्स विल्सन का जन्म 1805 में स्कॉटलैंड के छोटे से कस्बे हैविक में हुआ था. उनके पिता विलियम विल्सन एक टेक्सटाइल मिल के मालिक थे. जेम्स जब युवा थे तब ही उनकी मां का निधन हो गया था. उन्होंने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की और हैट के एक कारखाने में नौकरी की. लेकिन जब वह 19 साल के ही थे, उनका परिवार ब्रिटेन के लंदन शहर में ​शिफ्ट हो गया.

परिवार के सभी भाइयों ने मिलकर वहां एक कारखाना स्थापित किया. विल्सन को कारोबार में काफी सफलता मिली और 1837 में ही उनका नेटवर्थ 25000 पौंड तक पहुंच गया था. लेकिन उसी साल की आर्थिक संकट में वह अपनी ज्यादातर संपत्ति गंवा बैठे. दिवालिया होने से बचने के लिए उन्होंने 1839 में अपनी ज्यादातर प्रॉपर्टी बेच दी. इसके बाद उन्होंने 1853 में चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया, आस्ट्रेलिया और चाइना की शुरुआत की. 1969 में इसका स्टैंडर्ड बैंक में विलय कर दिया गया और यह स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में बदल गया.

पत्रकारिता में आजमाया हाथ

उन्होंने पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया और चर्च ऑफ इंग्लैंड को विशेष सुविधाएं देने का विरोध किया. इसके बाद उन्होंने अखबारों में करेंसी, रेवेन्यू आदि से जुड़े कई लेख लिखे. साल 1843 में उन्होंने खुद 'द इकोनॉमिस्ट' नाम से अखबार शुरू किया जो आज ब्रिटेन का प्रतिष्ठित आर्थिक वीकली है. वे करीब 16 साल तक इस अखबार के अकेले मालिक और चीफ एडिटर रहे. अप्रैल 1848 में उनके लिखे एक लेख को कार्ल मार्क्स ने भी नोटिस किया और उसकी आलोचना यह कहते हुए की कि उन्हें मुनाफे और कार्यदिवस की समझ नहीं है.

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राजनीति में प्रवेश

विल्सन 1847 में लिबरल पार्टी की तरफ से ब्रिटेन की संसद में हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य बन गए. उनके आर्थिक अनुभवों को देखते हुए 1848 में तत्कालीन प्रधानंत्री लॉड जॉन रसेल ने उन्हें उस बोर्ड ऑफ कंट्रोल का सचिव बना दिया जो ईस्ट इंडिया कंपनी की निगरानी करता था. इसके बाद 1853 से 1858 तक उन्होंने ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय में वित्तीय सचिव के रूप में काम किया. इसके बाद एक बार फिर वह सांसद बने.

भारत में बजट और टैक्स ढांचे की शुरुआत

अगस्त 1859 में विल्सन ने संसद से इस्तीफा दे दिया क्यों​कि उन्हें कौंसिल ऑफ इंडिया का वित्तीय सचिव बना दिया गया था. महारानी विक्टोरिया ने उन्हें भारत में एक टैक्स ढांचे की स्थापना, कागजी मुद्रा की शुरुआत और भारत के वित्तीय तंत्र को दुरुस्त करने के लिए भेजा. कहा जाता है कि 1857 की पहली भारतीय क्रांति से ब्रिटेन को काफी आर्थिक नुकसान हुआ था, इसलिए महारानी ने जेम्स विल्सन को भेजा. ​उन्हें कलकत्ता में वायसराय कौसिंल का सदस्य वित्त बनाया गया , जो उस समय एक तरह से वित्त मंत्री के जैसा पद था.

उन्होंने इनकम टैक्स व्यवस्था की शुरुआत की. यह व्यवस्था 24 जुलाई, 1860 को लागू हुई थी, इसलिए इस दिन को भारत में इनकम टैक्स डे के रूप में मनाया जाता है. 1859 के उनके बजट स्टेटमेंट को भारत का पहला बजट स्पीच माना जाता है.

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कलकत्ता में हुआ निधन

विल्सन ने ऐसा बजट पेश किया जिससे ब्रिटेन को काफी फायदा हुआ. इसके एक साल बाद ही उनकी मौत हो गई. असल में उस साल देश की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता में बहुत गर्मी थी और उन्होंने वहां से कहीं और जाने से इनकार कर दिया था. उन्हें पेचिश (dysentery) हो गया और अगस्त 1860 में महज 55 साल में उनकी मौत हो गई. इतने प्रख्यात व्यक्ति को सामान्य आदमी की तरह कलकत्ता के मलिक बाजार में स्थित एक कब्रगाह में दफना दिया गया.

उनकी कब्र साल 2007 में खोजा गया जब इनकम टैक्स विभाग के एक जॉइंट कमिश्नर सीपी भाटिया भारत के टैक्स इतिहास पर किताब लिखने के लिए रिसर्च कर रहे थे. भाटिया के प्रयासों से ही उनकी कब्र वाली जगह को दुरुस्त किया गया और वहां एक उनके नाम का एक पत्थर लगाया गया.

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