हर रूट पर, हर दिशा में, हर ट्रेन में मुसाफिरों का मर्ज़ एक है. लेकिन उस मर्ज की दवा कहीं नहीं. जैसे ही बात महिलाओं की सुरक्षा की छिड़ती है, डर और भय से कांपती हुई आवाज़ निकलती है.
भारतीय रेल की कमियों का पुलिंदा बंधने लगता है और महिलाएं चीख चीख कर यही कहती हैं, वो रेल में महफूज़ नहीं हैं. आजतक का सफर अब वेस्टर्न रेलवे के सबसे व्यस्त रूट की तरफ चल पड़ा है. अब हम जानेंगे कि अहमदाबाद-मुंबई ट्रेन में महिलाओं की दशा और दिशा कैसी है.
रात के 9 बजकर 5 मिनट, अहमदाबाद से सूरत 229 किलोमीटर का सफर, लोकशक्ति एक्सप्रेस. पहले हम आपको बता दें कि ट्रेन में महिलाओं का एक डिब्बा है, और भी आधा, अब महिलाएं क्या करतीं, कोई खिड़की से सामान अंदर फेंकने लगा, तो कोई बच्चे को खिड़की से सीट पर बैठा रहा है.
आखिर सवाल रात भर के सफर का जो ठहरा. कायदे से महिलाओं के डिब्बे में महिला सुरक्षाकर्मी तैनात होना चाहिए. लेकिन महिलासुरक्षा कर्मी तो दूर की बात किसी भी सुरक्षाकर्मी का दूर दूर अता पता नहीं है.
- महिलाओं के डिब्बे में कोई सुरक्षाकर्मी नहीं होता.
- ट्रेन में महिलाओं का डिब्बा सबसे आखिरी में होता है, जबकि बीच में होना चाहिए.
- कई बार लड़के ट्रेन की खिड़कियों से लटक जाते हैं.
- हमें खुद अपनी हिफाज़त करनी पड़ती है.
- रेल बजट में महिलाओं के लिए एक डिब्बा और बढ़ना चाहिए.
ये शिकायतें लोकशक्ति एक्सप्रेस में सफऱ करने वाली महिलाओं की हैं. आजतक की महिला रिपोर्टर ने रात 9 बजे से रात के डेढ़ बजे तक सफर किया लेकिन पूरे सफर में ख़ौफ पीछे दौड़ता रहा और रेलवे पुलिस के जवान नदारद रहे.