मैग्लेव ट्रेन के लिए खोले गए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट का ग्लोबल टेंडर मंगलवार को बंद हो गया. रेल मंत्रालय के मुताबिक के लिए इस टेंडर में 6 कंपनियों ने अपनी दिलचस्पी दिखाई है. जिन कंपनियों ने मैग्लेव ट्रेन के ग्लोबल टेंडर में अभिरुचि दिखाई है वो हैं
1. मेसर्स एजाइल सेतु प्राइवेट लिमिटेड
2. मेधा सर्वो ड्राइव्स प्राइवेट लिमिटेड
3. अमेरिकन मैग्लेव टेक्नॉलॉजी
4. स्विस रैपाइड एजी
5- भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड
6- शरद एम मराठे
इन कंपनियों में सबसे चौंकाने वाला नाम है भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी भेल. खास बात ये है कि मैग्लेव तकनीक में रेलवे का कहना है कि पूरा प्रोजेक्ट मेक इन इंडिया के तहत कार्यान्वित किया जाएगा. इसके अलावा जिन कंपनियों को गंभीर दावेदार माना जा रहा है वो हैं अमेरिकन मैग्लेव टेक्नॉलॉजी. ये कंपनी हाइपरलूप नाम से मैग्लेव ट्रेन को एक अलग तकनीक से चलाने की बात कर रही है. इसके अलावा स्विस रैपाइड एजी को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है.
रेल मंत्रालय टेंडर में मिले रिस्पांस से उत्साहित
रेल मंत्रालय एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट का ग्लोबल टेंडर में मिले रिस्पांस से उत्साहित है. रेल मंत्रालय अब इन सभी कंपनियों के प्रस्तावों पर बातचीत करेगी और इनका अध्ययन करेगी. इसके बाद टेक्निकल मानक तय करके आरएफक्यू निकाला जाएगा. रेलवे के उच्च अधिकारियों का कहना है कि रेलवे मैग्लेव ट्रेन में टेक्नॉलॉजी पार्टनर बनना चाहती है और इसके लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रचर देने का काम रेलवे करेगी. ऐसा अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर रेलमंत्री भविष्य की तकनीक को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं और मैग्लेव ट्रेन इसके लिए पूरी तरह से फिट है.
पीपीपी के जरिए मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की योजना
मैग्लेव की बात करें तो ये दो शब्दों से मिलकर बना है मैग्नेटिक लेवीटेशन यानी चुंबकीय शक्ति से ट्रेन को हवा में ऊपर उठाकर चलाना. मैग्नेटिक लेवीटेशन के जरिए ट्रेन चलाने के लिए रेल मंत्रालय ने पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की योजना बनाई है. रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि मैग्लेव तकनीक में दिलचस्पी लेने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि इसमें नई तकनीक आ चुकी है और जैसे-जैसे सुपर कंडक्टविटी में तकनीकी महारत हासिल हो रही है वैसे-वैसे मैग्लेव ट्रेन को चलाना आसान हो रहा है.
रेल मंत्रालय का जोर है कि जो भी कंपनी देश में मैग्लेव ट्रेन सिस्टम लाने की जिम्मेदारी उठाएगी वो रेल मंत्रालय को टेक्नॉलॉजी पार्टनर बनाएगी. इसके लिए अलग से कंपनी स्थापित की जाएगी जो पूरे प्रोजेक्ट को बनाने और चलाने का जिम्मा उठाएगी. अगले छह महीने के बाद आरएफक्यू यानी बिडिंग के लिए टेंडरिंग शुरू होने की संभावना है.