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बजट 2015: ये इंडस्ट्री मांगे मोर

बजट आने में बहुत थोड़े दिन रह गए हैं और देश के हर तबके की कई तरह की मांगें सरकार के सामने हैं. इनमें टैक्स घटाने से लेकर नई परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाने तक की मांगें हैं. जनता की मांग अगर इनकम टैक्स में कटौती की है तो उद्योगों की मांग इसके सरलीकरण की है. ऐसी हजारों मांगे सामने हैं.

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बजट आने में बहुत थोड़े दिन रह गए हैं और देश के हर तबके की कई तरह की मांगें सरकार के सामने हैं. इनमें टैक्स घटाने से लेकर नई परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाने तक की मांगें हैं. जनता की मांग अगर इनकम टैक्स में कटौती की है तो उद्योगों की मांग इसके सरलीकरण की है. ऐसी हजारों मांगे सामने हैं.

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देश के उद्योगों की कई मांगें हैं और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन सीआईआई ने उनकी लंबी फेहरिस्त सरकार के सामने रखी है. सीआईआई हर साल सरकार के सामने अपनी सूची रखता है. इस बार उसका जोर इस बात पर है कि सरकार टैक्स प्रणाली में सुधार करे और उसमें स्थिरता लाये.

सीआईआई का कहना है कि वर्तमान टैक्स प्रणाली विसंगतियों से भरी हुई है जिससे न केवल अनिश्चितता और मल्टीपल टैक्स के लिए रास्ता खुला हुआ है. उसका कहना है कि टैक्स प्रणाली सरल हो और उसमें हर प्रावधान की बकायदा व्याख्या हो. इसके अलावा टैक्स प्रासंगिक हों यानी वे समय के अनुकूल हों.

कई बड़े उद्योगपति मानते हैं कि सरकार को कॉर्पोरेट टैक्स में भी छूट देनी चाहिए और उसे घटाकर 25 प्रतिशत करना चाहिए. टैक्स पर लगे सभी सरचार्ज हटाए जाएं. उनकी यह भी मांग है कि बोनस या डिविडेंड पर लगे टैक्स को घटाकर 10 प्रतिशत कर देना चाहिए.

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एक टैक्स ऐसा है, जिससे उद्योगपति नाराज हैं और वह मिनिमम आल्टरनेटिव टैक्स या मैट. 2007 में इसे जब लगाया गया था तो यह मात्र साढ़े सात प्रतिशत था, लेकिन अब बढ़कर साढ़े अठारह प्रतिशत हो गया. उनका कहना है कि यह बहुत ज्यादा है और इससे उनमें निराशा पैदा हो रही है.

उद्योगपति चाहते हैं कि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर लगाए ताकि कच्चे माल की सप्लाई से लेकर तैयार माल तक की सप्लाई सुनिश्चित हो सके. इसके लिए उसे बजट में प्रावधान करना चाहिए.

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