विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु का मानना है कि भारत में ऊंची वृद्धि के दौर में 5-6 प्रतिशत की मुद्रास्फीति को बहुत ऊंचा नहीं माना जा सकता.
यह पूछे जाने पर कि क्या देश में महंगाई की दर बहुत ऊंची है, बसु ने कहा, ‘यदि मुद्रास्फीति को 5-6 फीसद के दायरे में रखने में सफलता मिलती है, तो यह बहुत ऊंची नहीं है. दक्षिण कोरिया में 1970 में ऊंची वृद्धि के दौर में लोगों को महंगाई की ऊंची दर को भी झेलना पड़ा था.’ उन्होंने कहा कि यदि देश वास्तविक वृद्धि हासिल करता है, तो इसका मतलब सभी के लिए अधिक भोजन और कपड़ा होना है. यदि थोड़ी महंगाई ऊंची भी रहती है, तो भी कोई फर्क नहीं है.
फिलहाल महंगाई की दर 7 प्रतिशत के आसपास चल रही है. हालांकि, बसु का मानना है कि मुद्रास्फीति 2 से 3 प्रतिशत के दायरे में नहीं आएगी. भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में नीतिगत दरों में बदलाव नहीं किया था. महंगाई की ऊंची दर की वजह से केंद्रीय बैंक ने अप्रैल से ब्याज दरों में कटौती नहीं की है.
भारतीय प्रबंधन संस्थान-कलकत्ता में एक संगोष्ठी के मौके पर बातचीत में बसु ने कहा कि सब्सिडी के रूप में सीधे नकदी हस्तांतरण से देश की अर्थव्यवस्था पर किसी प्रकार का मुद्रास्फीतिक दबाव नहीं पड़ेगा. हालांकि, बसु ने इस बात से इनकार नहीं किया कि लाभार्थियों को नकद सब्सिडी का कुछ दुरुपयोग हो सकता है. उन्होंने कहा कि किसी मध्यस्थ द्वारा इसका लाभ लेने की तुलना में यह बेहतर है.
इस बीच, विश्व बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने देश में बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की जोरदार तरीके से वकालत की है. इसके साथ उन्होंने इस बारे में राज्यों को खुद निर्णय करने का अधिकार दिए जाने का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि राज्यों को फैसले लेने के लिए स्वायत्तता देना अच्छा कदम है. हालांकि, इसमें कुछ असमानता हो सकती है, लेकिन यह अच्छा है क्योंकि आपने राज्यों को नीति अपनाने की अनुमति दी है.
अभी तक 10 राज्यों ने बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर सहमति दी है. उन्होंने कहा कि नई नीति के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होंगे. लेकिन सकारात्मक प्रभाव नकारात्मक की तुलना में अधिक होंगे.