रिजर्व बैंक की 18 दिसंबर को होने वाली मध्य तिमाही समीक्षा से पहले रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने शनिवार को कहा कि मुद्रास्फीति केन्द्रीय बैंक के लिए प्राथमिक चिंता बनी रहेगी.
सुबीर गोकर्ण की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि 5.3 प्रतिशत रह जाने के बाद अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ब्याज दरों में कटौती की मांग जोर पकड़ने लगी है.
गोकर्ण ने यहां बॉम्बे प्रबंधन संघ के एक कार्यक्रम में कहा कि रिजर्व बैंक को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे कि आर्थिक वृद्धि को कुछ समय के लिए बढ़ावा मिले लेकिन लंबे समय के लिए मुद्रास्फीति का जोखिम बढ़ जाए. ‘जरूरी नहीं कि सिर्फ एक पहल से बदलाव आ जाये.. इसके साथ कई जोखिम भी जुड़े हैं.’
आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि केन्द्रीय बैंक 18 दिसंबर की मध्य तिमाही समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा, क्योंकि मुद्रास्फीति अभी भी 7.45 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनी हुई है. दूसरी तिमाही की मौद्रिक समीक्षा के दौरान भी रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों को यथावत रखा.
गोकर्ण ने कहा ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए कि यदि एक पहल का असर नहीं हो रहा है तो इसके ठीक विपरीत कदम उठाया जाए. ‘ठीक विपरीत कदम उठाना इसका निदान होगा, ऐसा मानना ठीक नहीं.’
रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने गुरुवार को नीतिगत दरों में कटौती का संकेत दिया था. आर्थिक वृद्धि दर में भारी गिरावट को देखते हुए गवर्नर ने इसके संकेत दिए. गवर्नर ने कहा ‘हम उम्मीद कर रहे हैं कि चौथी तिमाही से मुद्रास्फीति में गिरावट आने लगेगी.
हम अपनी 18 दिसंबर की मध्य तिमाही समीक्षा और 29 जनवरी को होने वाली तीसरी तिमाही की मौद्रिक समीक्षा करते समय आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के गणित पर गौर करेंगे और उसी के अनुरूप मौद्रिक नीति में कदम उठाएंगे.’ हालांकि, सुब्बाराव ने यह भी कहा था कि 7.5 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर अभी भी ऊंची है, हालांकि यह अपने उच्च स्तर से काफी नीचे आई है.
रिजर्व बैंक ने लगातार ऊंची बनी मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए मार्च 2010 के बाद से 13 बार नीतिगत दरों और दूसरे प्रावधानों में वृद्धि की. इसके बावजूद मुद्रास्फीति अभी भी रिजर्व बैंक के पांच प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है.
गोकर्ण ने कहा कि वित्तीय मजबूती के रास्ते पर बढ़ने और वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) जैसे कर सुधारों को लागू करने की प्रतिबद्धता जैसे उपायों से वैश्विक एजेंसियों द्वारा देश की साख रेटिंग कम करने से रोका जा सकता है.
उन्होंने कहा कि राज्यों में मूल्यवर्धित कर प्रणाली (वैट) लागू होने के बाद उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार आया है. ठीक इसी तरह का प्रभाव जीएसटी लागू होने से भी पड़ सकता है.
रुपये में उतार-चढ़ाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि चालू खाते के ऊंचे घाटे और छोटे से विदेशी मुद्रा भंडार के बूते रुपये को गिरने से रोकना काफी मुश्किल काम है.