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आर्थिक मामले में UPA से भी गई गुजरी निकली मोदी सरकार!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मेक इन इंडिया' और खुला बाजार की आर्थिक नीति से बाजार में दम फूंकने की कोशिश तो की, लेकिन इसका असर नजर नहीं आ रहा है. कई सर्वे इस बात की ताकीद कर रहे हैं कि इस समय 'बिजनेस सेंटीमेंट' साल के सबसे निचले स्तर पर है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मेक इन इंडिया' और खुला बाजार की आर्थिक नीति से बाजार में दम फूंकने की कोशिश तो की, लेकिन इसका असर नजर नहीं आ रहा है. कई सर्वे इस बात की ताकीद कर रहे हैं कि इस समय 'बिजनेस सेंटीमेंट' साल के सबसे निचले स्तर पर है. इसका यही मतलब है कि कंपनियां भारत में व्यापार करने में रुचि नहीं दिखा रहीं.

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महीने भर में ही देश का बिजनेस सेंटीमेंट 4.8 फीसदी तक लुढ़क गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी में देश में बिजनेस सेंटीमेंट का आकंड़ा 66.2 था, जो मार्च में 63 फीसदी ही रह गया है.

 प्रधानमंत्री के लिए चिंता की बात यह है कि फिलहाल आंकड़े मनमोहन सरकार के मुकाबले भी बदतर हैं. 2014 के मंदे दौर में भी भारत का 'बिजनेस सेंटीमेंट' 65.5 था, जो मौजूदा स्तर से 3.8 फीसदी ज्यादा है.

मोदी सरकार बनने के बाद सितंबर तक बिजनेस सेंटीमेंट अच्छा था, लेकिन उसके बाद से यह लगातार लुढ़क रहा है. सितंबर से लेकर अब तक इसमें 8.2 अंकों की गिरावट हो चुकी है. उत्पादन, नए ऑर्डर, इनवेंट्री, उत्पादन क्षमता जैसे औद्योगिक पैमानों पर सेंटीमेंट में गिरावट आ रही है.

मोदी के पीएम बनने से पहले सेंसक्स 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा था, लेकिन 26 मई 2014 के बाद से सेंसेक्स में इजाफे की दर घटकर 11 फीसदी रह गई है. आने वाले दिन भी कोई खास सुनहरे नजर नहीं आ रहे. एक अनुमान के मुताबिक, सैलरी में इजाफे की उम्मीद घटती जाएगी. हालांकि मोदी के रहते कुछ हालात सुधरे भी हैं. कारोबारी घाटा 17 महीनों के निचले स्तर पर पहुंचकर 6.1 अरब डॉलर हो गया है.

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इन आंकड़ों का स्रोत MNI इंडिकेटर, RBI इंडस्ट्रियल आउटलुक सर्वे और बीएसई हैं.

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