राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर पूरा देश कृतज्ञता के साथ उन्हें याद कर रहा है. महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई और उससे जुड़े नेताओं के बारे में लोगों को बहुत कुछ पता है, लेकिन उनके आंदोलनों में आर्थिक मदद करने वाले भामाशाह, स्वतंत्रता सेनानी और बिड़ला समूह के संस्थापक घनश्याम दास बिड़ला के बारे में आपको कम जानकारी होगी. आज इस मौके पर आइए हम गांधी और जी.डी. बिड़ला के रिश्तों के बारे में जानते हैं.
कौन थे जी.डी. बिड़ला
घनश्याम दास बिड़ला भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बिड़ला ग्रुप के संस्थापक थे. घनश्यामदास बिड़ला का जन्म 1894 में राजस्थान के पिलानी में हुआ था. वे गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे. भारत सरकार ने सन 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया. घनश्याम दास बिड़ला का निधन जून 1983 में हुआ था. उन्होंने अपने पैतृक स्थान पिलानी में बेहतरीन निजी तकनीकी संस्थान बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी की स्थापना की.
कुछ अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर उन्होने 1927 में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कामर्स ऐंड इंडस्ट्री (FICCI) की स्थापना की थी. उनकी प्रेरणा से ही यूको बैंक की स्थापना हुई जिसे पहले यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक कहते थे. यह समूह कपड़ा, फिलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम जैसे विविध क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिसकी अग्रणी कंपनियां 'ग्रासिम इंडस्ट्रीज' और 'सेंचुरी टेक्सटाइल' हैं.
महात्मा गांधी से कैसे बना रिश्ता
घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के कट्टर समर्थक थे तथा महात्मा गांधी की गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के लिये तत्पर रहते थे. इन्होंने पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने एवं कांग्रेस के हाथ मज़बूत करने की अपील की. उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया. वे राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए लगातार आर्थिक मदद देते रहे. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया तथा 1932 में हरिजन सेवक संघ के संस्थापक अध्यक्ष बने.
वह महात्मा गांधी से पहली बार 1916 में मिले थे और गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शुरुआती दौर में ही उनसे प्रभावित हो गए थे. महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंतिम चार महीने दिल्ली में बिड़ला के आवास 'बिड़ला हाउस' में ही गुजारे थे.
इंडिया टुडे को साल 1979 में दिए एक इंटरव्यू में जी.डी. बिड़ला ने कहा था, 'जहां तक गांधी जी से मेरे जुड़ाव की बात है, यह कोई सुनियोजित नहीं था. मेरी महत्वाकांक्षा तो यह जरूर थी कि स्वतंत्रता संग्राम के सभी प्रमुख नेताओं से मिलूं. गांधीजी भी मेरे जीवन में इसीलिए आए क्योंकि मैं उनसे जाकर मिला. मैं उन्हें जानना चाहता था, और मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि मैं इस महान आत्मा से बहुत लाभान्वित हुआ.'
गांधी से बहुत प्रभावित थे बिड़ला
इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में घनश्याम दास बिड़ला ने कहा था कि वे अपने जीवन में सबसे ज्यादा प्रभावित महात्मा गांधी और चर्चिल से प्रभावित थे. गांधी और बिड़ला के बीच परस्पर सम्मान का रिश्ता था. महात्मा गांधी ने जी.डी. बिड़ला के बारे में लिखा था, 'ईश्वर ने मुझे कई मार्गदशक दिए हैं, आप उनमें से एक हो.' तो बिड़ला ने महात्मा गांधी के बारे में लिखा था, 'जो रकम भी वह मुझसे मांगते थे, उन्हें पता था कि यह मिलेगा, क्योंकि मैं उन्हें किसी चीज के लिए इंकार नहीं कर सकता था.'
जी.डी. बिड़ला ब्रिटिश सरकार और महात्मा गांधी के बीच बेहतर समझ बनाने के एक सेतु की तरह भी काम करते थे. कारोबार के शुरुआती दौर में अंग्रेजों ने बिड़ला के रास्ते में काफी रोड़े अटकाए थे, इसलिए बिड़ला ने अपने दम पर स्वदेशी उद्योगों का विकास कर उन्हें एक तरह से उन्हें कड़ा जवाब दिया.