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Mahatma Gandhi death Anniversary: इकोनॉमी के बारे में क्या थी महात्मा गांधी की सोच

Mahatma Gandhi death Anniversary:वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करने जा रही हैं. उन्हें अर्थव्यवस्था की कठिन चुनौतियों से निपटना है. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि महात्मा गांधी अर्थव्यवस्था के बारे में किस तरह की सोच रखते थे.

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Mahatma Gandhi death Anniversary: स्वदेशी पर था महात्मा गांधी का जोर (फोटो: Getty Images)
Mahatma Gandhi death Anniversary: स्वदेशी पर था महात्मा गांधी का जोर (फोटो: Getty Images)

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  • वित्त मंत्री 1 फरवरी को देश का बजट पेश करेंगी
  • इकोनॉमी में सुस्ती से मोदी सरकार जूझ रही है
  • क्या महात्मा गांधी इसमें कोई राह दिखा सकते हैं
  • ऐसे दौर में इकोनॉमी पर गांधी की सोच महत्वपूर्ण

आज पूरे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथ‍ि मनाई जा रही है. परसों यानी 1 फरवरी को देश का बजट पेश होने वाला है और यह ऐसे माहौल में होगा जब देश की आर्थ‍िक हालत खस्ता है. ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि महात्मा गांधी अर्थव्यवस्था के बारे में किस तरह की सोच रखते थे.

गांधी जी इकोनॉमी का ऐसा मॉडल चाहते थे जिसमें गांव-गांव तक उद्योग हों, गरीब-अमीर के बीच असमानता खत्म हो और हर व्यक्ति के पास रोजगार हो. इकोनॉमी के बारे में उनके प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:

अर्थव्यवस्था का लक्ष्य क्या होना चाहिए

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गांधी जी का मंत्र था कि जब भी कोई काम हाथ में लें तो यह ध्‍यान में रखें कि इससे सबसे गरीब और समाज के सबसे अंतिम या कमजोर व्यक्ति का क्‍या लाभ होगा? हाल के दशकों की बात करें तो मनमोहन सरकार जिस तरह के समावेशी विकास की बात करती रही और मोदी सरकार का 'सबका साथ सबका विकास' का जो मंत्र है, उसमें भी लक्ष्य यही है कि विकास की किरण सबसे कमजोर व्यक्ति तक पहुंचे.

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भौतिक प्रगति ही सब कुछ नहीं

महात्मा गांधी का मानना है था कि आर्थ‍िक विकास का लक्ष्य मनुष्य को खुशहाल बनाना होना चाहिए. वे संपन्नता की ऐसी आधुनिक सोच में विश्‍वास नहीं करते थे, जिसमें भौतिक विकास को ही तरक्की की मूल कसौटी माना जाता है. वे, बहुजन सुखाय-बहुजन हिताय और सर्वोदय यानी सबके उदय के सिद्धांतों में विश्‍वास करते थे. हालांकि महात्मा गांधी भौतिक समृद्धि के विरोधी नहीं थे न ही सभी परिस्थितियों में उन्होंने मशीनों के उपयोग को नकारा था.

उनका कहना था कि मशीनों से सभी के समय और मेहनत में बचत होनी चाहिए, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि मनुष्‍य मशीनों का दास बन कर रह जाए अथवा वह अपनी पहचान ही खो दे. वे चाहते थे कि मशीनें मनुष्‍य के लिए हों, न कि मनुष्‍य मशीन के लिए हो. 

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अपरिग्रह और स्‍वराज

अपरिग्रह और स्वराज महात्मा गांधी के आर्थ‍िक विचारों के प्रमुख आधार थे. अपरिग्रह का मतलब है जरूरत से ज्यादा चीजें न रखना और स्वराज का मतलब है कि आत्मनिर्भरता. महात्‍मा गांधी ने कहा था, 'हमारी धरती के पास प्रत्‍येक व्‍यक्ति की आवश्‍यकता के लिए तो बहुत कुछ है, पर किसी के लालच के लिए कुछ नहीं.'

स्वराज से मतलब एक तरह की विकेंद्रित अर्थव्यवस्था है. गांधी जी ने ऐसी अर्थव्यवस्था को बेहतर समझा जिसमें मजदूर या श्रमिक स्वयं अपना मालिक हो. महात्मा गांधी का मानना था कि इससे लोग प्रत्‍येक राज्‍य सत्ता से स्‍वतंत्र होकर अपने जीवन पर नियंत्रण कर सकेंगे. साथ ही, गांव और ग्राम सभाएं आत्‍म-निर्भर और स्‍वावलम्‍बी हो सकेंगी.

स्‍वराज से उनका आशय ऐसा समाज था जिसमें प्रत्‍येक व्‍यक्ति को सम्‍मानपूर्वक जीवन बिताने का मौका मिले और विकास के लिए समान अवसर उपलब्‍ध हों. उन्‍होंने एक ऐसे समाज का विचार दिया जिसमें आर्थिक प्रगति और सामाजिक न्‍याय, साथ-साथ हों.

स्वदेशी पर जोर

आजादी के पहले देश में उद्योग पर ब्रिटेन की कंपनियों का कब्जा था. भारत में कच्चा माल बनता और इन कच्चा माल के आधार पर ब्रिटेन के उद्योग में तैयार माल को भारत के लोगों को उपभोग के लिए मजबूर किया जाता. ब्रिटेन के औद्योगिक क्रांति में भारत के श्रम और संसाधनों का बहुत योगदान था. इस देश का करोड़ों रुपया पूरी तरह से चूसकर ब्रिटेन भेजा जा रहा था. गांधी जी ने इसके ख‍िलाफ देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वेदशी अपनाने पर जोर दिया था. 

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वे चाहते थे कि जो करोड़ों रुपया भारत से बाहर चला जाता है उसको बचाया जाए और उसका इस्तेमाल देश के विकास में किया जाए. स्वदेशी का मतलब है देश की कंपनियों और कारखानों को मजबूत किया जाए. इसी सोच के तहत विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई और गांधी जी ने खादी और ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया. उनका मानना था कि खादी भारतवासियों की एकता,उनकी आर्थिक स्वाधीनता और समानता का प्रतीक बन सकता है. मौजूदा शासकों द्वारा 'मेड इन इंडिया' या 'मेक इन इंडिया' पर जोर देना इसी सोच का ही एक स्वरूप है.

गांधी जी ने स्वदेशी को आर्थिक आधार का व्यापक रूप देते हुए कहते हैं कि शहरों द्वारा ग्रामीणों का शोषण बंद किया जाना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार देशी उद्योगों को विदेशी निर्माताओं से संरक्षण दिया जाता है, उसी प्रकार कुटीर उद्योगों को भी मशीन से बनी वस्तुओं के विरूद्ध सरंक्षण दिया जाना चाहिए.

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mahatma-gandhi-pib_013020092533.jpgफाइल फोटो: PIB

कुटीर उद्योगों पर दिया जोर

गांधी जी कहते थे कि भारत गांवों में बसता है शहरों में नहीं. गांव वाले गरीब हैं क्योंकि उनमें अधिकतर बेरोजगार हैं या अल्प बेरोजगार की स्थिति में हैं. इनको उत्पादक रोजगार देना होगा जिससे देश की संपत्त‍ि में वृद्धि हो. उनकी सोच यह थी कि देश में जनसंख्या बहुत ज्यादा है लेकिन उसकी तुलना में जमीन और अन्य संसाधन सीमित हैं, इसलिए कुटीर यानी गांव-गांव में खड़े होने वाले अत्यंत छोटे उद्योग ही रोजगार दे सकते हैं. वह पश्चिमी देशों की तरह मशीनों पर आधारित पूंजी प्रधान उद्योग नहीं चाहते थे.

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गरीबों और अमीरों की खाई दूर होनी चाहिए

गांधी जी आर्थ‍िक असमानता को दूर करने के पक्षधर थे. उनका कहना था कि जब तक चंद अमीरों और करोड़ों भूखे, गरीब लोगों के बीच खाई बनी रहेगी तब तक किसी भी शासन का मतलब नहीं है. उन्होंने कहा था, ' नई दिल्‍ली के महलों और श्रमिक एवं गरीबों की दयनीय झोंपडियों के बीच असमानता, स्‍वतंत्र भारत में एक दिन भी नहीं टिक पाएगी, क्‍योंकि स्‍वतंत्र भारत में गरीबों को भी वही अधिकार होंगे जो देश के सबसे अमीर आदमी को प्राप्‍त होंगे.'

महात्मा गांधी चाहते थे कि गांवों को स्‍वावलम्‍बी आर्थिक ईकाई बनाई जाए. इसका मतलब यह है कि गांवों में छोटे और कुटीर उद्योगों का केंद्र बने. गांवों और छोटे शहरों को विकास का केंद्र बनाया जाए. ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करें और गांवों में समृद्धि तथा बुनियादी सुविधाएं लेकर आएं. हर हाथ को काम यानी सबको रोजगार प्रदान करने का यह गांधी का मंत्र था.

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