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हिंदी की आर्थिक समीक्षा में अर्थ का अनर्थ

वित्त मंत्री प्रणव मंत्री द्वारा गुरुवार को लोकसभा में पेश आर्थिक समीक्षा की हिन्दी प्रति ‘गलतियों का गडबडझाला’ बनकर सामने आयी.

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वित्त मंत्री प्रणव मंत्री द्वारा गुरुवार को लोकसभा में पेश आर्थिक समीक्षा की हिन्दी प्रति ‘गलतियों का गडबडझाला’ बनकर सामने आयी और कई जगहों पर जहां इसमें पूरे के पूरे वाक्य गायब हैं, वहीं कुछ जगहों पर नामों और आंकड़ों की इतनी गलतबयानी है कि ‘अर्थ का अनर्थ’ हो गया है.

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संसद में पेश आर्थिक समीक्षा और बुधवार को पेश रेल बजट की हिन्दी प्रतियों को देखकर जेहन में बरबस हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान भारतेंदु हरिश्चंद्र की दशकों पहले चंद शब्दों में व्यक्त की गयी वह व्यथा फिर से हरी हो जाती है जब उन्होंने लिखा था ‘हिन्दी पूछत कातर वाणी, चेटी छाड़ब कब होउब रानी’. समीक्षा के हिंदी संस्करण में तमाम तरह की खामियां देखने को मिलीं.

इसकी बानगी देखिये अंग्रेजी शब्द ‘अक्रूइंग’ के लिये हिंदी में प्राप्तियां या वसूली बेहतर शब्द है लेकिन हिंदी संस्करण में इसके लिये ‘प्रोदभूत’ शब्द लिखा गया जो भाषा की अच्छी समझ रखने वाले को भी शायद ही समझ आये. इसी प्रकार, ‘कलैमिटी’ के लिये हिंदी में प्रचलित शब्द ‘आपदा’ है लेकिन आर्थिक समीक्षा में इसके लिये ‘विपदा’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है. रेड टेपिज्म के लिये सरल शब्द ‘लाल फीताशाही’ है लेकिन इसके लिये ‘सरकार में निर्णय लेने का पदानुक्रम आधारित सांगठनिक ढांचा’ लिखा गया है.

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पुन: ‘ड्राउट’ के लिये अकाल शब्द का इस्तेमाल किया गया है जबकि प्रचलित शब्द ‘सूखा’ है. इतना ही नहीं कई जगह आर्थिक समीक्षा के हिंदी संस्करण में उपलब्ध आंकड़े भी गलत सूचना देते हैं. समाचार के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण बिंदु 2010-11 में आर्थिक वृद्धि के बारे में बताया गया है. हिंदी संस्करण में इसके 8 फीसद से 8.5 फीसदी के बीच रहने की संभावना बतायी गयी है जबकि अंग्रेजी संस्करण में इसके 8.5 फीसदी के दायरे में 0.25 फीसदी कम बेसी रहने की बात कही गयी है.

पुन: समीक्षा के हिंदी संस्करण की पृष्ठ संख्या 140 पर विदेशी रिण खंड में यह लिखा गया है कि कुल विदेशी रिण के तहत दीर्घकालीन रिण 19.2 अरब अमेरिकी डालर से बढ़कर 200.4 अरब डालर हो गया है जबकि अंग्रेजी संस्करण में कहा गया है दीर्घकालीन रिण 19.2 अरब डालर बढ़कर 200.4 अरब डालर हो गया है. दिलचस्प बात यह है कि वित्त मंत्रालय हिंदी समाचार पत्रों और एजेंसियों को आर्थिक समीक्षा की हिंदी प्रति देने पर ही जोर देता है और हिंदी संस्‍करण के भ्रमित करने वाले अनुवाद के कारण हिन्दी मीडिया कई बार पाठकों को सही जानकारी नहीं दे पाता.

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