लोकसभा चुनाव 2014 के प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने वादा किया कि सरकार बनने के 100 दिन के अंदर वह विदेशों में पड़े कालेधन को वापस ले आएंगे और आए हुए पैसो को आम आदमी के बैंक खाते में पहुंचा देंगे. इस वादे के बाद देश की राजनीति में कालाधन एक बड़ा मुद्दा बना. केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी तो विपक्ष ने चुनावी वादा याद दिलाया कि कब आएगा कालाधन और कब आएंगे हर खाते में 15 लाख रुपये. साल 2016 कालेधन के खिलाफ बड़े कदम के लिए याद किया जाएगा.
नोटबंदी से पहले 5 अहम फैसले
आइए देखें अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कालेधन पर लगाम लगाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए-
1 सरकार की कमान संभालते ही मोदी ने रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया. इस एसआईटी को कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए रिपोर्ट देने का काम दिया गया.
2 जुलाई 2015 में विदेश में पड़े कालेधन और संपत्ति के खुलासे के लिए संसद से कानून पास कराया. इस कानून के तहत तीन महीने के अंदर कालेधन का खुलासा कर 60 फीसदी टैक्स देने का प्रावधान किया गया.
3. अमेरिका और स्विटजरलैंड समेत कई देशों के साथ भारतीय नागरिकों के विदेशी बैंक खातों के ऑटोमैटिक इंफॉर्मेशन ट्रांसफर पर अहम समझौते किए गए.
4. अगस्त 2016 बेनामी संपत्ति पर लगाम लगाने के लिए कड़े कानून को संसद से पास कराया. बेनामी संपत्ति भ्रष्टाचार के जरिए कमाए गए कालेधन को छिपाने का बड़ा जरिया है.
5. 1 जून 2016 से 30 सितंबर 2016 तक वॉलंटरी इंकम डिसक्लोजर स्कीम लागू किया. इसके तहत कालेधन को स्वत: घोषित करने पर 45 फीसदी टैक्स लगाए जाने का प्रावधान था. इस स्कीम के तहत सरकार ने 65,250 करोड़ रुपये के कालेधन को बाहर निकालने में सफलता पाई.
अब ढाई साल के दौरान उठाए गए इन प्रावधानों के बाद 8 नवंबर को मोदी सरकार ने देश में सबसे ज्यादा सर्कुलेशन और अर्थव्यवस्था में कुल कैश के 85 फीसदी के बराबर 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट को गैरकानूनी करार दिया . नोटबंदी के इस फैसला का अहम मकसद अर्थव्यवस्था से कालेधन को निकालकर पूरी तरह से बाहर करने का है. इन हाई डिनॉमिनेशन करेंसी को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद सरकार की कोशिश है कि वह देश में पूरी तरह से कैशलेस ट्रांजैक्शन व्यवस्था को लागू करे जिससे एक बार फिर कालेधन को जड़ें जमाने का मौका न मिले.