मोदी सरकार से कई मसलों पर मतभेद के बाद त्यागपत्र देने वाले भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की जगह अब नई नियुक्ति हो गई है. इस पद पर अब माइकल देबब्रत पात्रा को नियुक्त किया गया है. वह रिजर्व बैंक के चौथे डिप्टी गवर्नर होंगे. तीन अन्य डिप्टी गवर्नर पहले से हैं.
पिछले साल विरल आचार्य के इस्तीफा देने के बाद से ही यह पद खाली था. डिप्टी गवर्नर पद पर पात्रा का कार्यकाल तीन साल का होगा. पात्रा भी विरल आचार्य की तरह मौद्रिक नीति पर काम करेंगे.
कौन हैं माइकल देबब्रत पात्रा
पात्रा अभी तक रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति विभाग में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे. उन्होंने आईआईटी मुंबई से पीएचडी किया है और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से फाइनेंशियल स्टेबिलिटी में डॉक्टरल रिसर्च किया है. उन्होंने 1985 में आरबीआई ज्वॉइन किया था. इसके बाद से वह लगातार तरक्की करते गए.
गौरतलब है कि दिसंबर से पहले पिछली तीन मौद्रिक नीति समीक्षा में पात्रा ने ब्याज दरों में कटौती का समर्थन किया था, लेकिन दिसंबर में उन्होंने कटौती का समर्थन नहीं किया. ब्लूमबर्ग की एक खबर के अनुसार, दिसंबर की बैठक में ब्याज दरों में कटौती के विरोध में वोट करते हुए उन्होंने कहा, 'इस समय मौद्रिक नीति आर्थिक गतिविधियों में जान फूंकने का एकमात्र उपाय नहीं हो सकती. रक्षा पंक्ति की पहली लाइन में मौद्रिक नीति अगुवाई तो कर सकती है, लेकिन सभी वृहद आर्थिक प्रबंधन की शाखाओं के समन्वित प्रयास की जरूरत है.'
विरल आचार्य को क्यों जाना पड़ा था
गौरतलब है कि अपना कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले ही जुलाई 2019 ही विरल आचार्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. आचार्य का मोदी सरकार से इसके पहले कई मसलों पर मतभेद हुआ था और आखिरकार उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. वे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बनाए रखने के प्रबल समर्थक थे.
उन्होंने अपने एक भाषण में रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के समर्थन में कहा था, 'जो सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करती वह कभी न कभी वित्तीय बाजारों के कोप का शिकार होती है, अर्थव्यवस्था की बदहाली को बढ़ावा देती है और एक दिन इस बात के लिए पछताती है कि उसने एक महत्वपूर्ण नियामक संस्था को दमित किया था.'
विरल आचार्य का महंगाई को लेकर हमेशा सख्त रवैया रहा. उन्होंने कई बार ब्याज दरों में कटौती के फैसलों पर असहमति भी भी दर्ज कराई थी. RBI में आचार्य की नियुक्ति के दौरान ही नीतिगत दर तय करने का काम 6 सदस्यीय समिति (मौद्रिक नीति समिति) को दे दिया गया था.
आचार्य न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टेर्म स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं और वह निजी वजहों का हवाला देकर RBI से अलग हो गए. आचार्य ने तीन साल के लिए आरबीआई के बतौर डिप्टी गवर्नर 23 जनवरी 2017 को ज्वाइन किया था.
दरअसल, अपने कार्यकाल के अंतिम महीनों में डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य आरबीआई के नए गवर्नर शक्तिकांत दास के फैसलों से अलग विचार रख रहे थे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दो मॉनिटरिंग पॉलिसी की बैठक में महंगाई दर और ग्रोथ रेट के मुद्दों पर विरल आचार्य के विचार अलग थे.