प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा के महत्व को भारतीय ऊर्जा सुरक्षा में उसके स्थान से समझा जा सकता है. यूएई 2014-15 में भारत को कच्चे तेल का छठा सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है.
इससे पहले 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस देश की यात्रा की थी. समाचार पत्र खलीज टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में मोदी ने कहा, ‘भारत के आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा हित के लिहाज से खाड़ी क्षेत्र महत्वपूर्ण है.’
60 अरब डॉलर व्यापार स्तर
यूएई के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 1970 के दशक में 18 करोड़ डॉलर था, जो अब करीब 60 अरब डॉलर पहुंच चुका है. इस व्यापार के साथ चीन और अमेरिका के बाद यह 2014-15 में तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है.
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि मोदी की इस यात्रा में मुख्य जोर यूएई के संप्रभु संपत्ति कोष से निवेश आकर्षित करना है, जो यूएई के मुताबिक 800 अरब डॉलर से ज्यादा है.
इस बीच कच्चे तेल की घटती कीमत को देखते हुए यूएई सरकार ने गत महीने इस पर सब्सिडी समाप्त कर दी और पेट्रोल और डीजल मूल्यों को नियंत्रण मुक्त कर दिया है. इससे पेट्रोल 24 फीसदी महंगा होकर प्रति लीटर 0.58 डॉलर हो गया.
विदेश नीति पर काम करने वाले मुंबई के एक थिंक टैंक गेटवे हाउस के एक फेलो अमित भंडारी ने कहा कि तेल मूल्यों में गिरावट से छह सदस्यीय समूह, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) का लाभ घट रहा है. यूएई भी जीसीसी का एक सदस्य है.
भंडारी ने कहा, ‘देश के निर्यात में जीसीसी की 16 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है. जीसीसी की अर्थव्यवस्था यदि कमजोर होती है, तो उसका नकारात्मक असर भारतीय निर्यातकों पर भी होगा, जिससे भारतीय बैंक भी प्रभावित होंगे.’
उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि 2008 के आर्थिक संकट के दौरान दुबई में निर्माण गतिविधियां ठप हो गई थीं, जिससे हजारों भारतीय कामगार बेरोजगार हो गए थे.