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भूल जाइए नए रोजगार, खुद कमाई नहीं कर पा रहे मुद्रा के 97 फीसदी कर्जदार

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस योजना के तहत 97 से 93 फीसदी कर्ज पहली श्रेणी शिशु, 6 से 10 फीसदी कर्ज दूसरी श्रेणी किशोर और 1 से 2 फीसदी कर्ज शीर्ष पर तरुण श्रेणी में दिया गया है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

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केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप मुद्रा योजना के तहत तीन श्रेणियों में लोन देने का प्रावधान है. पहली श्रेणी शिशु में 50,000 रुपये, दूसरी श्रेणी किशोर में 50,000 से 5 लाख रुपये तक और तीसरी श्रेणी तरुण में 5 लाख से 10 लाख रुपये तक कर्ज देने का प्रावधान है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस योजना के तहत 97 से 93 फीसदी कर्ज पहली श्रेणी शिशु, 6 से 10 फीसदी कर्ज दूसरी श्रेणी किशोर और 1 से 2 फीसदी कर्ज शीर्ष पर तरुण श्रेणी में दिया गया है.

इस योजना के तहत दिए गए कर्ज का आकलन नए रोजगार सृजन करने के श्रोत के तौर पर देखने पर पाया गया कि वित्त वर्ष 2016-17 और 2017-18 के दौरान तीनों श्रेणियों में औसतन 23,083 रुपये शिशु, 2.09 लाख रुपये किशोर और 7.67 लाख रुपये का कर्ज तरुण श्रेणी में दिया गया.

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मुद्रा योजना की सच्चाई: लागू होने से पहले भी मिलता था फायदा

अब कारोबार के लिए दिया गया यह कर्ज कमाई नहीं बल्कि कारोबार की पूंजी है. यह पूंजी कितनी आय पैदा कर सकती है? मान लिया जाए कि प्रत्येक श्रेणी में दिया गया कर्ज 20 फीसदी का रिटर्न दे रहा है. इस आधार पर शिशु श्रेणी में मिला कर्ज 4,617 रुपये की आय दे सकता है. वहीं, किशोर श्रेणी में दिया गया औसत कर्ज 41,844 रुपये की आय और तरुण श्रेणी का कर्ज 1,53,445 रुपये की आय प्रति वर्ष देने में सक्षम है. लिहाजा, इस आधार पर मुद्रा कर्ज से प्रति माह प्रत्येक श्रेणी में आय 384.75 रुपये, 3,487 रुपये और 12,787 रुपये संभव है.

मुद्रा योजना में रोजगार सृजन की संभावना सीमित

मुद्रा कर्ज में आय की क्षमता को देखते हुए रोजगार पैदा करने की कितनी संभावना है? अगर अकुशल कृषि श्रमिक की प्रति दिन आय सितंबर 2018 में 355 रुपये अथवा 10,650 रुपये प्रति माह थी- तो जाहिर है मुद्रा योजना के तहत सिर्फ तरुण श्रेणी में 12,787 रुपये प्रति माह आय ही रोजगार देने की क्षमता रखता है. आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 और 2017-18 के दौरान कुल 6,99,582 कर्ज दिए गए (2,93,000 और 4,06,582 क्रमश:).

क्या यही आंकड़ों मुद्रा कर्ज के तहत पैदा किए गए नए रोजगार का है? आंकड़ों को आधार पर तो इसे सही करार दिया जा सकता है लेकिन दो अन्य तथ्यों के देखने की जरूरत है.

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रोजगार का कोई सरकारी अथवा गैर-सरकारी आंकड़ा मौजूद नहीं हैं, जिससे इसकी पुष्टि की जा सके. वहीं एनएसएसओ की 2014 की कर्ज और निवेश की आखिरी रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में ग्रामीण इलाकों में कुल लिए गए कर्ज का 60 फीसदी और शहरी इलाकों में कुल कर्ज का 81.7 फीसदी कर्ज गैर-कारोबारी उद्देश्य से लिया गया. इस कर्जों को लेने के लिए शादी, घर निर्माण, स्वास्थ और शिक्षा इत्यादि जैसे कारण बताए गए. संभावना है कि ऐसी ही कुछ मुद्रा कर्ज के साथ भी हो रहा हो जिससे रोजगार सृजन की इसकी क्षमता और संकुचित हो जाती है.

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