भारत और चीन ने हाल में अमेरिका की तर्ज पर इंडियन ड्रीम और चाइनीज ड्रीम का खाका तैयार कर न्यू इंडिया और न्यू चाइना की परिकल्पना की है. चीन में यह सपना 2013 में तब देखा गया जब मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2012 में देश की कमान संभाल चुके थे. वहीं भारत में 2014 न्यू इंडिया के सपने के लिए टर्निंग प्वाइंट बना जब नरेन्द्र मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में सरकार बनाई. कह सकते हैं कि दोनों ही देशों ने न्यू इंडिया और न्यू चाइना का सपना समानांतर देखा लेकिन बीते चार साल के दौरान इस सपने को हकीकत बनाने में चीन ने भारत को लगभग 50 साल और पीछे छोड़ दिया.
जानें किन कारणों से चीन से पिछड़ चुका है भारत
1. चाइनीज ड्रीमलाइनर (2014): बोइंग और एयरबस दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं को लंबी उड़ान देने का काम कर रही है. वैश्विक स्तर पर जिस तरह चीन एक आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है आने वाले दिनों में उसकी भी निर्भरता बोइंग और एयरबस पर बनी रहती. लेकिन 2014 में चीन सरकार ने इन दोनों कंपनियों पर निर्भरता खत्म करने और अन्य अर्थव्यवस्थाओं को उड़ाने देने के उद्देश्य से अपना ड्रीमलाइनर प्रोजेक्ट शुरू किया जिसने 2017 में अपनी पहली कोमैक सी 919 ड्रीमलाइनर की सफल उड़ान भरी. तकनीकि और प्रभाव में बोइंग और एयरबस के बराबर लेकिन कीमत में उनसे बेहतर चीन के ये ड्रीमलाइनर कॉमर्शियल प्रोडक्शन से पहले दुनियाभर से सप्लाई ऑर्डर प्राप्त कर चुकी है. एविएशन जानकारों का मानना है कि अगले 50 साल में दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला ड्रीमलाइनर बन सकता है कोमैक. वहीं भारत को अभी इस क्षेत्र में पहल करने में कई दशक लग सकते हैं क्योंकि फिलहाल वह एक हेलिकॉप्टर तक के लिए अन्य देशों पर निर्भर है.
2. मेड इन चाइना- इंडस्ट्री-4 (2015): बीते कुछ दशकों से चीन को दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब होने का तमगा मिला हुआ है. हालांकि इस तमगे को वैश्विक स्तर पर प्रोडक्शन के क्षेत्र में नकारात्मक पहलू में ज्यादा देखो जाता है. मेड इन इंडिया का मतलब घटिया और सस्ता उत्पाद. वहीं वैश्विक स्तर पर उत्कृष्ट उत्पादन का केन्द्र अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देश हैं जिन्हें इंडस्ट्री-4(चौथा इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन) की संज्ञा दी गई है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की कमान संभालने के बाद 2015 में चीन को इंडस्ट्री-4 तमगा दिलाने के लिए मेड इन चाइना-2025 की शुरुआत की है जिसके तहत वह मैन्यूफैक्चरिंग हब को भूलकर महज उत्कृष्ट उत्पादन में शरीक होगा. वहीं भारत ने 2015 में मेक इन इंडिया की शुरुआत की जिसके चलते वह चीन की जगह दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब बन सके.
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3. युआन बना ग्लोबल करेंसी(2016): साल 2016 में युआन ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की करेंसी बास्केट में बतौर अंतरराष्ट्रीय करेंसी अपनी जगह बना ली है. इसके साथ ही युआन ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के क्षेत्र में अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और बिट्रिश पाउंड के साथ खुद को ग्लोबल करेंसी बना ली है. गौरतलब है कि इससे पहले 1999 में यूरो को इस बास्केट में शामिल किया गया था जिसके तुरंत बाद चीन ने अपनी करेंसी को ग्लोबल करेंसी बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. इस क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि भले इस तमगे को चीन की करेंसी की कोई खास उपलब्धि नहीं कही जा सकती लेकिन इतना जरूर है कि यह महज 35 साल तक उसके आर्थिक विकास की रफ्तार के चलते हो सका है. वहीं इस तमगे का फायदा उसे दुनियाभर में कारोबार करने के लिए अब उसे डॉलर पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी करेंसी खुद डॉलर के बराबर अंतरराष्ट्रीय बाजार में खड़ी है.
4. 21वीं सदी का गेमचेंजर OBOR(2017): OBOR की 2017 में स्थापना कर चीन ने पहली बार कोई ऐसी कोशिश की है जिसका असर अगले सैकड़ों साल तक पूरी दुनिया पर पड़ना तय है. OBOR के जरिए चीन एशिया और यूरोप के लिए ड्रेड रूट निर्धारित करने की तैयारी में है. मौजूदा समय में चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब है और OBOR की स्थापना होने के बाद उसके लिए अपना मैन्यूफैक्चर्ड माल पूरे यूरोप और एशिया में वितरित करना आसान और अधिक फायदेमंद हो जाएगा. वहीं एशिया और यूरोप के बाकी देशों को इस नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए पहले मैन्यूफैक्चरिंग में चीन को चुनौती देनी होगी. गौरतलब है कि यदि अगले सैकड़ों साल तक वैश्विक कारोबार की दिशा तय करने वाले इस प्रोजेक्ट से भारत ने खुद को अलग कर रखा है. हालांकि चीन लगातार कोशिश कर रहा है कि भारत इसमें शरीक हो जिससे इंडयिन ओशन से OBOR को जोड़ने का काम आसान हो सके.
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5. अब एशिया में क्रूड ऑयल बेचेगा चीन (2018): मौजूदा समय में दुनियाभर में क्रूड ऑयल बेचने का काम अमेरिका और इंग्लैंड में स्थिति क्रूड एक्सचेंज द्वारा किया जाता है. वैश्विक स्तर पर क्रूड का कारोबार या अमेरिकी नायमैक्स (NYMEX) या फिर ब्रिटेन के ब्रेंट क्रूड (BRENT) पर किया जाता है. अब चीन सरकार ने अमेरिका और इंग्लैंड के इस एक्सक्लूजिव क्लब में जगह बनाने का ऐलान कर दिया है. 26 मार्च 2018 को चीन सरकार अपना क्रूड फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट लॉन्च INE करने जा रही है. इसके साथ ही चीन को पूरे एशिया क्षेत्र में बेचे जा रहे क्रूड की कीमत को निर्धारित करने में अहम भूमिका मिल जाएगी. गौरतलब है कि बीते एक दशक में क्रूड कारोबार में चीन ने मजबूत पकड़ बनाई है और 2017 में उसने क्रूड इंपोर्ट में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. इसके साथ ही चीन क्रूड की खपत करने वाले देशों के शीर्ष पर भी वह शुमार है. इस कदम के बाद अब चीन अपनी मुद्रा में क्रूड ऑयल को खरीद और बेच सकेगा और पूरे एशिया क्षेत्र में क्रूड की कीमत निर्धारित करने में उसे अहम भूमिका मिल जाएगी.