हांगकांग से नीरव मोदी को भारत लाने के लिए अब मोदी सरकार 14 साल पुराने एक केस का अध्ययन कर रही है. सरकार अपने दावे को मजबूत करने के लिए इस केस का सहारा लेगी.
असल में साल 2004 में कारोबारी अशोक ताहिलराम सदारंगानी को हांगकांग से भारत लाने में तत्कालीन सरकार सफल हुई थी. अब मोदी सरकार इस केस का अध्ययन कर रही है.
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, विदेश मंत्रालय, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को पूरा भरोसा है कि सदारंगानी केस से जो नजीर बनी है, उसकी मदद से अरबपति हीरा कारोबारी नीरव मोदी को भारत वापस लाया जा सकता है.
भारत ने हांगकांग के न्याय विभाग से नीरव मोदी को अस्थायी तौर पर गिरफ्तार करने का अनुरोध किया है. इसके लिए सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज मामलों और भारतीय कोर्ट द्वारा नीरव के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट का भी हवाला दिया गया है. गौरतलब है कि नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक से करीब 13,000 करोड़ रुपये की कर्ज धोखाधड़ी करने का आरोप है.
बताया जाता है कि अशोक ताहिलराम सदारंगानी ने महाराष्ट्र और यूनियन बैंक से करीब 8.5 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी और उसे साल 2004 में हांगकांग से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया था. सदारंगानी साल 2001 में देश छोड़कर भाग गया था और इंटरपोल की मदद से 2003 में उसका पता लगा था.
उसे हांगकांग की एक स्थानीय अदालत के आदेश पर 6 जून, 2004 को भारत प्रत्यार्पित कर दिया गया. अब भारत सरकार इस केस का स्टडी कर रही है ताकि यह समझा जा सके कि आखिर तब किस तरह से हांगकांग को राजी किया गया था.
विदेश मंत्रालय के अनुसार, हांगकांग का प्रशासन भारत सरकार के अनुरोध पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी इस पर कोई जवाब नहीं मिला है. नीरव की अस्थायी तौर पर गरफ्तारी का यह अनुरोध हांगकांग की सरकार के साथ 1997 में भारत द्वारा दस्तखत किए गए 'भगोड़े अपराधियों के आत्मसमर्पण' संधि के तहत किया गया है.
इस संधि के तहत विभिन्न अपराधों में आरोपी या दोषी लोगों के प्रत्यर्पण की बात कही गई है. इसकी धारा 10 में कहा गया है कि जरूरी परिस्थितियों में किसी व्यक्ति की अस्थायी रूप से गिरफ्तारी भी हो सकती है. विदेश मंत्रालय नीरव मोदी का पासपोर्ट 23 फरवरी को ही रद्द कर चुका है. उसके मामा मेहुल चोकसी का भी पासपोर्ट रद्द किया जा चुका है.