अगर आप पास आ रहे फेस्टिव सीजन में जीरो पर्सेंट फाइनांस पर कोई मोबाइल या टेलीविजन जैसे उत्पाद खरीदने की योजना बना रहें तो आपको निराशा हाथ लगने वाली है.
रिजर्व बैंक ने हालांकि, यह कदम उपभोक्ताओं के हित में उठाया है लेकिन इसका आगामी त्यौहारी मौसम के दौरान व्यावसायिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. केन्द्रीय बैंक ने बैंकों से यह भी कहा है कि डेबिट कार्ड से भुगतान करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जा सकता.
रिजर्व बैंक की अधिसूचना में कहा गया है, ‘..सैद्धांतिक तौर पर बैंकों को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिये जिससे किसी उत्पाद का ब्याज दर गड़बड़ाता है. इससे मूल्य प्रणाली की पारदर्शिता दूषित होती है. किसी उत्पाद की खरीदारी में ग्राहक को सोचविचार कर निर्णय लेने में मूल्य महत्वपूर्ण होता है.’
अधिसूचना में कहा गया है कि शून्य ब्याज दर की अवधारणा अस्तित्व में नहीं है. उचित व्यवहार यही है कि स्रोत चाहे कोई भी हो विभिन्न उत्पादों और वर्गों में प्रोसेसिंग फीस और ब्याज दरों को समान रखा जाना चाहिये.
क्रेडिट कार्ड के जरिये शून्य ब्याज दर वाली मासिक समान किस्तों (ईएमआई) वाली योजना में आमतौर पर ब्याज राशि को प्रोसेसिंग फीस के तौर पर ग्राहक से वसूल लिया जाता है. रिजर्व बैंक का मानना है, ‘इसी प्रकार कुछ बैंक कर्ज पर आने वाली लागत को ब्याज दर में शामिल कर लेते हैं.’
ब्याज पर रियायत मामले में केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि ऐसी योजनाओं में फायदा पहुंचाने के लिये ब्याज कम करने के बजाय रियायती राशि को कम करने के बाद कर्ज राशि को मंजूरी दी जानी चाहिये. ग्राहकों के हित में रिजर्व बैंक ने बैंकों से यह भी कहा है कि यदि कर्ज वापसी में कुछ समय के लिये स्थगत की अवधि रखी गई है तो ऐसे मामलों में इस छूट को ब्याज में समायोजित करने के बजाय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि ब्याज सहित कर्ज वापसी का समय स्थगित अवधि के बाद ही तय होना चाहिये.
आमतौर पर ग्राहकों को किसी उत्पाद की किस्तों में खरीदारी पर शून्य ब्याज दर या फिर निश्चित अवधि के बाद ही कर्ज चुकाने की पेशकश उत्पाद विनिर्माताओं या फिर डीलर द्वारा की जाती है. लेकिन इसमें बैंकों से ऋण लेकर खरीदारी को अंजाम दिया जाता है. रिजर्व बैंक ने कहा है कि इन सभी मामलों में बैंकों को चाहिये कि वह ग्राहकों को पूरी तरह से सभी लाभों के बारे में अवगत करायें और उन्हें पूरी योजना का हर तरह का लाभ उपलब्ध करायें.