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नोटबंदी: राजस्थान में 100 से ज्यादा कारखाने बंद, 50 हजार लोग बेरोजगार

राजस्थान में नोटबंदी की वजह से पहले ही परेशान चल रहे कल-कारखानों पर बिजली की बढ़ी कीमतें दोहरा झटका बनकर आई. इस वजह से राज्य की करीब 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयों में ताले लग चुके हैं और 50 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है.

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कारखाने बंद होने से 50 हजार से ज्यादा लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है
कारखाने बंद होने से 50 हजार से ज्यादा लोगों को नौकरी गंवानी पड़ी है

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राजस्थान में नोटबंदी की वजह से पहले ही परेशान चल रहे कल-कारखानों पर बिजली की बढ़ी कीमतें दोहरा झटका बनकर आई. इस वजह से राज्य की करीब 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयों में ताले लग चुके हैं और 50 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है.

नोटबंदी के बाद 70 फीसदी तक घटी मांग
इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि नोटबंदी के बाद हर क्षेत्र में करीब 60 से 70 फीसदी तक मांग में कमी आई है. जो कुछ औद्योगिक इकाइयां चल रही थीं, उनमें भी हालात सुधरने तक के लिए तालाबंदी शुरू हो गई है. कारोबारियों की शिकायत है कि मजदूर चेक में वेतन नहीं ले रहे हैं, तो वहीं मजदूरों का कहना है कि बैंक वाले उनका खाता नहीं खोल रहे हैं, तो वे चेक लेकर करेंगे भी क्या...

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औद्योगिक इलाकों में पसरा सन्नाटा
राजस्थान के औद्योगिक इलाके विश्वकर्मा में सन्न्टा पसरा है. स्टील की ढलाई से लेकर मार्बल कटाई का काम करने वाले सारे कारखाने बंद पड़े हुए हैं. ऐसे ही एक कारखाने मंगला इंडस्ट्रीज में मशीनें बंद हैं और मजदूर खाली बैठे थे. कारखाने के मालिक ने सात दिन पहले बिजली की कीमत में दोगनी से अधिक बढ़ोत्तरी के बाद ताला लगा दिया है.

मंगला इंडस्ट्रीज के मालिक सीताराम अग्रवाल का कहना है कि नोटबंदी की वजह से इंडस्ट्री में काम घटकर चौथाई भर ही रह गया था, मगर बिजली की कीमत में सीधे ढाई रुपये प्रति यूनिट बढ़ाये जाने से बिजली की खपत वाले उधोगों की कमर टूट गई. लिहाजा पूरे राजस्थान में करीब 100 से ज्यादा इंडस्ट्रीज पर ताला लग गया है.

कारखानों में तालाबंदी ने तोड़ी मजदूरों की कमर
कारखानों में इस तालाबंदी की सबसे ज्यादा मार मजदूरों पर पड़ी है. आगे से स्टील, मार्बल, सीमेंट, वुड और जेम्स-जेवैलरी जैसे उद्योगों से भी मांग नहीं आ रही. इस वजह से मजदूर 40 फीसदी तक निकाल दिए गए हैं. इनमें से जिन मजूदरों का बैंक अकाउंट नहीं था, उनकी तनख्वाह अब तक नहीं आई है और जिनका खाता था, उन्हें कारखाना मालिकों ने पूराने नोट थमा दिए.

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मगर दिसंबर में उसकी भी गुंजाइश नहीं होने की वजह से मजदूर नौकरी से निकाले जा रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि बैंक वाले नए एकाउंट नहीं खोल रहे हैं. कह रहे हैं कि 31 दिसंबर के बाद ही नया खाता खोलेंगे, वर्ना काला धन सफेद करोगे. इसी वजह से मजदूरों की मजबूरी है कि उन्हें नकद वेतन ही चाहिए, चेक का वह कुछ कर भी सकते.

बैंक खाते के बिन बेहाल मजदूर
बिहार के बक्सर स्थित कोचस से आए नवीन नाम के ऐसे ही एक मजदूर का कहना है कि हम तो कोई घर जाता है, तो उसके साथ ही घर नकद पैसे भेजते हैं. चेक लेकर क्या करेंगे. वहीं यूपी के भदोही के रहने वाले प्रशांत बताते हैं कि मालिक पुराना पैसा दे रहा था. खाता था ही नहीं तो क्या करते. इसलिए लिए नहीं. अब बैंकवाला कह रहा है कि जनवरी में बैंक में खाता खोलेंगे.

बता दें कि राजस्थान में जवाहरात, टेक्सटाइल, मार्बल और पत्थर जैसे इंडस्ट्रीज में बड़ी संख्या में मजदूर काम करते हैं. लेकिन इन सभी जगहों पर काम न के बराबर दिख रहा है. कारखानों के मालिकों का कहना है कि आगे ऑर्डर नहीं मिलने के अलावा इंडस्ट्री में कैश की भारी किल्लत है. सबका कहना है कि मार्च के बाद ही समझ आएगा कि आगे क्या होगा.

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