रिजर्व बैंक ने एक बार लोगों को चौंका दिया. मुद्रास्फीति के आंकड़े आने के बाद उसने गुरुवार की सुबह रेपो रेट में 25 बेसिस प्वांइट की कटौती करके एक बड़ा संकेत दिया. इसके बाद अब रेपो रेट 7.75 प्रतिशत हो गया. इसका सीधा मतलब यह हुआ कि ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत हो गई है.
गवर्नर राजन का कहना है कि मुद्रास्फीति की दर में लगातार आ रही कमी के कारण ही यह कदम उठाया गया है. दरअसल पिछले साल से हमने महंगाई को घटते देखा और उससे भी बढ़कर कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को गिरते देखा. ये सभी ब्याज दरें कम करने को प्रेरित कर रही थीं. अब यह तय है कि कच्चे तेल की कीमतें कम से कम इस साल नीचे ही रहेंगी. मॉनसून के लगभग सामान्य रहने के कारण अनाजों की कीमतें भी स्थिर रहने की उम्मीद की जा सकती है. रिजर्व बैंक का यह भी मानना है कि राजस्व घाटे के मोर्चे पर भी सरकार को सफलता मिली है और वह नियंत्रण में ही रहेगा. राजन का यह भी कहना है कि अगर मुद्रास्फीति की दर इसी तरह कम रही तो अगले साल के शुरू में रेपो रेट में कमी होगी.
ये तो थीं देश के केन्द्रीय बैंक की बातें. लेकिन सवाल उठता है कि इतनी ज्यादा ब्याज दरें अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई के लिए जिम्मदार नहीं थीं? ब्याज दरों की मार से मिडल क्लास के लोग जिन्होंने होम लोन, कार लोन लिया था, उनके बजट बिगड़ गए. कर्जदार बैंकों के लोन चुका पाने में असमर्थ हो गए. बैंकों का एनपीए बढ़कर अधिकतम पर जा पहुंचा. हालात ऐसे हो गए कि मंदी की मार झेल रहे कारोबारियों के लिए कर्ज पिछले जन्म के पाप की तरह हो गया था.
दुनिया के किसी भी विकासशील देश में ब्याज दरें इतनी नहीं थीं जितनी भारत में. इसने देश की अर्थव्यवस्था के पहियों में ब्रेक लगाने का काम किया. फिर भी रिजर्व बैंक अपना राग अलापता रहा. उसे लगता था कि इससे मुद्रास्फीति पर रोक लगी हुई है जबकि आंकड़े बताते हैं कि सुब्बा राव के कार्य काल में 13 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद महंगाई नहीं रुकी. दरअसल जब रोजमर्रा की वस्तुओं या खाने-पीने की चीजों की महंगाई होती है तो फिर ब्याज दरें बढ़ाने का फॉर्मूला काम नहीं करता. वैसे भी भारत जैसे देश में जहां लाखों करोड़ रुपये का काला धन जमा है, ब्याज दरें बहुत ज्यादा मायने नहीं रखतीं.
एक कठोर मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था को चोट ही पहुंचाती रही है. अब रिजर्व बैंक ने एक बड़ा कदम उठाया है. अगर यह आगे भी जारी रहा तो उद्योगों और होम लोन लेने वालों को राहत मिलेगी तथा जीडीपी विकास दर में तेजी आएगी.