केंद्र सरकार ने 23 मार्च को लॉकडाउन के पहले चरण का ऐलान किया था. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के ऐलान के साथ ही देश में आवाजाही पर ब्रेक लग गया था. बस और ट्रेनें सेवाएं बंद थीं. लेकिन लॉकडाउन के चंद दिन बाद ही बड़े पैमाने पर लोग घर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े थे.
लॉकडाउन में पारले-जी का मिला साथ
प्रवासी मजदूरों की भीड़ को देखते हुए केंद्र सरकार ने बसों और श्रमिक ट्रेनों के जरिये प्रवासियों को घर तक पहुंचाने की सुविधा उपलब्ध कराई, लेकिन इस बीच बड़े पैमाने पर राह चलते लोगों की मदद के लिए लोग सामने आए. खासकर खाने-पीने की चीजें श्रमिकों को देते दिखे.
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महज 5 रुपये में मिलने वाला पारले-जी बिस्किट का पैकेट सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने वाले प्रवासियों के लिए भी खूब मददगार साबित हुआ. किसी ने खुद खरीद के खाया, तो किसी को दूसरों ने मदद के तौर पर दिया. यही नहीं, इस कोरोना संकट के बीच लोगों ने भी अपने घरों में भी पारले-जी बिस्किट का स्टॉक जमा कर लिया.
पारले-जी का शानदार कारोबार
इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च, अप्रैल और मई में पारले-जी का शानदार कारोबार रहा है. इस दौरान पारले-जी बिस्किट की इतनी अधिक बिक्री हुई है कि पिछले 82 सालों का रिकॉर्ड टूट गया है. हालांकि, पारले कंपनी ने बिक्री के आंकड़े नहीं बताए हैं.
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रिपोर्ट के मुताबिक पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने कहा कि कंपनी का कुल मार्केट शेयर करीब 5 फीसदी बढ़ा है और इसमें से 80-90 फीसदी ग्रोथ पारले-जी की सेल से हुई है. वहीं दूसरी कंपनियों की बिस्किट की बिक्री में इजाफा हुआ है. पारले-जी 1938 से भारतीयों के बीच फेवरेट ब्रांड रहा है.
10 महीने पहले संकट में थी कंपनी
हालांकि पिछले साल अगस्त में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें पारले-जी की डिमांड घटने की बात कही गई थी, खासकर 5 रुपये वाले पैकेट की बिक्री घटने का जिक्र किया गया था. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि पारले प्रोडक्ट्स की मांग में सुस्ती की वजह से 8,000-10,000 लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है. कंपनी ने सरकार ने मदद मांगी थी.