पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम पर लगातार घिर रही सरकार अब इससे राहत देने के रास्ते तलाशने में जुट गई है. सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इसका रास्ता ढूंढ निकाला है. इसके लिए सरकार एक्साइज ड्यूटी और वैट में कोई कटौती नहीं करेगी, बल्कि वह इसके लिए तेल निर्माता कंपनियों को आगे लाने वाली है.
केंद्र सरकार ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ONGC) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) जैसी घरेलू तेल निर्माता कंपनियों के सहारे आम आदमी को पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत दिलाने की तैयारी कर रही है. बताया जा रहा है कि इसके लिए वह एक नया 'टैक्स' ला सकती है. यह टैक्स सरकारी और गैर-सरकारी, दोनों ही तरह की तेल कंपनियों पर लगेगा.
न्यूज एजेंसी पीटीआई को सूत्रों ने बताया, ''यह नया टैक्स, जो सेस की शक्ल में आ सकता है. यह तब-तब लागू किया जाएगा, जब भी कच्चा तेल 70 डॉलर के पार निकल जाएगा.'' दरअसल इन तेल कंपनियों को घरेलू स्तर पर तैयार किए गए तेल के लिए भी अंतरराष्ट्रीय दरों पर भुगतान किया जाता है.
सरकार की योजना यह है कि जब भी कच्चा तेल 70 डॉलर के पार जाएगा, तो ये कंपनियां अपने मुनाफे का हिस्सा फ्यूल रिटेलर के साथ बांटेंगी. ऐसे में फ्यूल रिटेलर्स कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों का असर नियंत्रण करने में कामयाब हो सकेंगे. इससे पेट्रोल और डीजल के दाम बेतहाशा न बढ़ने से आम आदमी को राहत मिलेगी.
पहले भी अपना चुके हैं ये तरीका
यह पहली बार नहीं है कि जब सरकार सरकार पीएसयू को बढ़ते दाम का भार उठाने के लिए कह रही है. इससे पहले भी ओएनजीसी और ऑयल इंडिया ने अंडर रिकवरीज 40 फीसदी तक भुगतान किया है. दरअसल सरकार ने एक अधिकतम दाम तय किया था. उसके ऊपर बढ़ने वाली कीमतों का असर तेल कंपनियों को अपने ऊपर लेना पड़ता था. इस तरह इन कंपनियों ने 13 साल के लिए सरकार की तरफ से दी जाने वाली सब्सिडी का भार उठाया था.
सरकार की तरफ से पेट्रोल और डीजल पर दी जाने वाली यह सब्सिडी जून, 2015 में खत्म हु्ई थी. इससे पहले 2008 में भी ऐसा एक टैक्स लगाने के सुझाव पर काम किया जा रहा था, लेकिन केयर्न इंडिया के विरोध के बाद इस प्रस्ताव को लागू नहीं किया गया. अब एक बार फिर सरकार ऑयल प्रोड्यूसर कंपनियों पर 'विंडफॉल टैक्स' लगाने की तैयारी कर रही है.