आप जब भी पेट्रोल पंप पर पेट्रोल या डीजल भरवाने जाते हैं तो हर बार ये सोचने को मजबूर होते हैं कि आखिर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दाम घटते क्यों नहीं, घटेंगे भी कैसे सरकार की कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा यहीं से तो आता है. पेट्रोल का जो वास्तविक आधार मूल्य है, उसकी तुलना में आम आदमी को लगभग दोगुना दाम देना पड़ रहा है. टैक्स पॉलिसी बनाने वालों ने वास्तविक टैक्स दर की तुलना में 100 फीसदी से भी ज्यादा टैक्स थोप दिया है.
केंद्र सरकार की जीएसटी के तहत कुल अप्रत्यक्ष टैक्स कलेक्शन में आधा पेट्रोल और डीजल उपभोक्ताओं की जेब से आता है. इंडियन आयल कॉरपोरेशन के आंकड़ों के मुताबिक, पेट्रोल का वास्तविक आधार मूल्य प्रति लीटर 33.91 रुपये है, जबकि आम आदमी के लिए इसका खुदरा मूल्य 72.96 रुपये प्रति लीटर है. केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी से लेकर राज्यों के वैल्यू एडेड टैक्स यानी वैट लगने के चलते यह अंतर और बढ़ जाता है.
तेल की कीमतों में बदलाव
16 जून, 2017 से डीजल और पेट्रोल के दाम रोज के आधार पर संशोधित होते हैं. पेट्रोल पर कुल 35.5 रुपये टैक्स देना होता है, इसमें 20 रुपये एक्साइज ड्यूटी और 15.51 वैट होता है. इसके अलावा 3.56 डीलर का कमीशन होता है. वैट हर राज्य में अलग है, इसलिए हर राज्य में दाम भी अलग अलग बैठता है.
सरकार की कमाई
2014 से पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 10 गुना बढ़ चुकी है और घटी है सिर्फ दो बार. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तेल के प्रति लीटर पर दो रुपये एक्साइज ड्यूटी और रोड इनफ्रस्ट्रक्चर सेस लगा दिया है. इसके अलावा कच्चे तेल पर 1 रुपये प्रति टन की इम्पोर्ट ड्यूटी भी लगा दी गई है जिससे वार्षिक आधार पर सरकार को 28000 करोड़ का लाभ होगा.
पेट्रोल की कीमत
सामान्य टैक्स में राज्यों का भी हिस्सा होता है, लेकिन सेस में राज्यों का हिस्सा नहीं होता है. इसलिए केंद्र सरकार ने बजट में सामान्य टैक्स की जगह सेस लगाया है. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र ने पेट्रोल (11.77 रुपये लीटर) और डीजल (13.47 रुपये लीटर) पर 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है. अक्टूबर 2018 में पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 1.50 रुपये प्रति लीटर कम हुई थी. अक्टूबर 2017 में भी सरकार ने प्रति लीटर 2 रुपये की एक्साइज ड्यूटी कम की थी. इसका नतीजा है कि 2013-14 और 2016-17 के बीच पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज से केंद्र सरकार का राजस्व 46% की दर से बढ़ा है.
दाम बढ़ने की वजह
2018-19 में पेट्रोलियम उत्पाद सबसे निर्यात होने वाली वस्तु है. कुल निर्यात में इसका हिस्सा 14.1 प्रतिशत है. 2018-19 आयात होने वस्तुओं में कच्चे तेल का हिस्सा सबसे ज्यादा 22.2 प्रतिशत है. इसके बाद सोना और दूसरी धातुओं का हिस्सा 6.4 प्रतिशत और मोती एवं दूसरे कीमती पत्थरों का हिस्सा 5.3 प्रतिशत है. साफ है सरकार अपनी कमाई कम करना नहीं चाहती, इसलिए पेट्रोलियम पदार्थों पर लगातार तमाम तरह के टैक्स और सेस लगाये जा रहे हैं.