प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को देश के बड़े बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के प्रमुखों के साथ एक बैठक की. इस बैठक में पीएम मोदी ने कोरोना संकट की वजह से प्रभावित अर्थव्यवस्था की स्थिति का जायजा लिया.
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के मुताबिक बैठक में भविष्य के विजन और रोडमैप पर चर्चा हुई. देश के विकास में फाइनेंशियल और बैंकिंग सिस्टम की अहम भूमिका पर चर्चा हुई.
इस बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि छोटे उद्यमियों, एसएचजी, किसानों को उनकी ऋण जरूरतों को पूरा करने और ग्रोथ के लिए संस्थागत ऋण का उपयोग करने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाना चाहिए. पीएमओ के मुताबिक, बैठक में बैंक की भूमिका पर भी बात हुई कि प्रत्येक बैंक को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है, और स्थाई क्रेडिट ग्रोथ सुनिश्चित करने के लिए अपनी व्यवस्थाओं की समीक्षा करनी चाहिए.
बैंकों को सहयोग के लिए सरकार तैयार
बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि बैंकिंग प्रणाली के साथ सरकार मजबूती के साथ खड़ी है. सरकार इसके समर्थन और इसके विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए तैयार है.
बैठक में बैंकों से लागत कम करने और धोखाधड़ी पर लगाम लगाने के लिए डिजिटल पर फोकस करने की सलाह दी गई. बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपने ग्राहकों के बीच RUPAY और UPI के उपयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए.
इसे पढ़ें: 23 कंपनियों में विनिवेश, सीतारमण बोलीं- सही मौके और कीमत का इंतजार
कॉरपोरेट दिग्गजों ने की थी शिकायत
दरअसल, मोदी सरकार के पिछले 6 साल के कार्यकाल में भारतीय बैकिंग एवं वित्तीय सेक्टर के लिए मुश्किलें बढ़ती गई हैं. अब कोरोना संकट के बाद बैंकों की हालत और खराब हो गई है. वे कर्ज देना नहीं चाहते और कारोबारी कर्ज लेना नहीं चाहते.
यही नहीं, हाल में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों और NBFCs को वित्तीय संकट से निपटने के लिए सक्रिय आधार पर पूंजी जुटाने की सलाह दी थी. जबकि कॉरपोरेट जगत की शिकायत है कि बैंक कर्ज देने से हिचक रहे हैं. केंद्र सरकार ने कोरोना संकट से प्रभावित MSME सेक्टर के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत 3 लाख करोड़ रुपये के लोन उपलब्ध कराने का ऐलान किया था.
बैंकों की समस्या
गौरतलब है कि कोरोना संकट की वजह से एक तरफ बैंकिंग सेक्टर पर अर्थव्यवस्था को संभालने की भारी जिम्मेदारी है तो दूसरी तरफ, कर्ज डिफाल्ट और ईएमआई मोरेटोरियम की वजह से उनकी हालत खराब है. इसके बावजूद कॉरपोरेट जगत बैंकों की भूमिका से खुश नहीं है.
इसे भी पढ़ें: इस सेक्टर को मिल सकती है मदद, कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा तबाह
कॉरपोरेट जगत की एक स्वर में यह मांग है कि बैंकों को अपना खजाना और खोलना होगा. कई कॉरपोरेट हाउस का यह मानना है कि सरकार की सहमति के बावजूद बैंक अपने खजाने को खोलने में कंजूसी दिखा रहे हैं, जिसकी वजह से कॉरपोरेट जगत के हाथ बंधे हुए हैं.
क्या हैं चुनौतियांइंडिया टुडे हिंदी के संपादक अंशुमान तिवारी कहते हैं, 'मोदी सरकार के कार्यकाल में ही एनबीएफसी का संकट खड़ा हुआ. भ्रष्टाचार और कर्ज संकट की वजह से कई एनबीएफसी डूब गए. इस पूरे सेक्टर में नकदी की भारी कमी हो गई. बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में बढ़ते घोटाले, कई बैंकों का विफल हो जाना, इसकी वजह से ग्राहकों में भरोसे की कमी, ब्याज दरों का घटते जाना, बैंका का विलय मोदी सरकार के लिए इस साल सबसे बड़ी चुनौती है.'