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PM ने की कोयला क्षेत्र में कमर्शियल माइनिंग की शुरुआत, जानें क्यों इसे कहा जा रहा बड़ा सुधार

अब निजी क्षेत्र के कोयले के इस्तेमाल और कीमतों के मामले में पूरी तरह से आजाद होगा. कोरोना संकट के बीच सरकार ने जब 20 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज का ऐलान किया तो उसमें काफी बड़ा हिस्सा उन बड़े आर्थिक सुधारों का था जिनका कॉरपोरेट सेक्टर वर्षों से इंतजार कर रहा था.

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पीएम मोदी ने की कॉमर्शियल माइनिंग की शुरुआत (फाइल फोटो)
पीएम मोदी ने की कॉमर्शियल माइनिंग की शुरुआत (फाइल फोटो)

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  • पीएम मोदी ने कोल सेक्टर में कॉमर्शियल माइनिंग की शुरुआत की
  • निजी क्षेत्र दशकों से कोल सेक्टर में इस सुधार का इंतजार कर रहा था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत निजी क्षेत्र के लिए 41 कोल ब्लॉक्स की नीलामी की प्रक्रिया की शुरुआत की. यह एक बड़ा आर्थिक सुधार है, जिसकी दशकों से निजी क्षेत्र मांग कर रहे थे. आइए जानते हैं कि क्या है इसका मतलब और इससे क्या होगा बदलाव?

वर्षों से था इंतजार

आज के दिन को भारत के कोयला क्षेत्र के लिए बड़ी आजादी का दिन बताया जा रहा है. अब निजी क्षेत्र के कोयले के इस्तेमाल और कीमतों के मामले में पूरी तरह से आजाद होगा. कोरोना संकट के बीच सरकार ने जब 20 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज का ऐलान किया तो उसमें काफी बड़ा हिस्सा उन बड़े आर्थिक सुधारों का था जिनका कॉरपोरेट सेक्टर वर्षों से इंतजार कर रहा था.

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पीएम मोदी ने कहा कि देश के कोल सेक्टर को कैप्टिव और नॉन कैप्टिव के जाल में उलझाकर रखा गया था. कोयला खदानों के आवंटन में बड़े-बड़े घोटाले की चर्चा हर किसी ने सुनी है. इसी वजह से देश के कोल सेक्टर में इनवेस्टमेंट कम होता था. कोयला निकलता किसी राज्य में था, इस्तेमाल किसी अन्य राज्य में होता था. काफी कुछ अस्तव्यस्त था. साल 2014 के बाद स्थिति को बदलने के लिए कई सुधार किए गए.

पीएम मोदी ने कहा कि इसका भी ध्यान रखा गया है कि इस क्षेत्र में उतरने वाली नई कंपनियों को फाइनेंस की कोई दिक्कत न आए.

उन्होंने कहा ​कि अब कोयले के लिए बाजार खुल गया है. जिस सेक्टर को जब जितनी जरूरत होगी वह खरीदेगा.

अभी तक था सरकारी सरकारी कंपनियों का एकाधिकार

देश में कोयले के खनन और उसकी बिक्री पर अभी तक कोल इंडिया जैसी सरकारी कंपनियों का एकाधिकार था. निजी क्षेत्र को सिर्फ कैप्टिव जरूरतों यानी अपने कारखानों के लिए बिजली पैदा करने के लिए ही कोयला खदान दिया जाता था. लेकिन इसने एक तरह के घोटाले को भी जन्म दिया जिसने यूपीए सरकार के दौराना काफी चर्चित कोयला घोटाला हुआ और यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया.

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अब कोयला खनन का अधिकार निजी क्षेत्र की कंपनियों को होगा और इसके कॉमर्शियल इस्तेमाल यानी खरीद-फरोख्त का भी अधिकार होगा. हालांकि इसके पहले खनन विकास, निर्माण और कोयले की ढुलाई आदि में निजी क्षेत्र का सहयोग लिया जाता था.

इन कंपनियों को हो सकता है फायदा

कोयले की निजी क्षेत्र को कॉमर्शियल माइनिंग की इजाजत देने से वेदांता, जेएसडब्लू एनर्जी, एस्सेल मा​इनिंग, अडानी, रियो टिंटो जैसी कंपनियों को फायदा मिल सकता है.

क्या है सरकार की सोच

कोयला क्षेत्र में सुधार के द्वारा सरकार देश को कोयला उत्पादन में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाना चाहती है. नई कंपिनयों को भी कोयला खदान की नीलामी में शामिल होने का मौका मिलेगा. इसमें अप्रफंट राशि कम होगी, बिडिंग प्रक्रिया पारदर्शी होगा, ऑटोमेटिक

रूट से 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत होगी और एक नेशनल कोल इंडेक्स के आधार पर रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल होगा.

गौरतलब है कि देश में खासकर बिजली उत्पादन के लिहाज से कोयले में आत्मनिर्भरता हासिल करना जरूरी है. इस सुधार के पीछे सरकार की सोच यही है कि अगले पांच साल में देश में एक अरब टन अतिरिक्त कोयले का उत्पादन हो और घरेलू थर्मल बिजली उत्पादन के लिए पूरी तरह से देश से ही कोयला हासिल हो सके.

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अभी तक ये थी कोल सेक्टर की हालत

देश में कोल सेक्टर का 1973 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था. इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में कोयला खनन की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) तैयार हो गई जिसका कोयला खनन पर पूरा एकाधिकार था. कोल इंडिया द्वारा देश में करीब 83 फीसदी कोयले का उत्पादन किया जाता है. वर्ष 2018-19 में कोल इंडिया ने 606 मिलियन टन यानी 60.6 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया.

इसके बावजूद देश में कोयला आयात करना पड़ता है. यूपीए के शासन के दौरान साल 2009-10 से 2013-14 के बीच कोयले का आयात सालाना करीब 23 फीसदी की दर से बढ़ा, लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में यह घटकर 2 फीसदी पर आ गया.

भारत में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा भंडार है, इसके बावजूद साल 2019-20 में हमें 1.58 लाख करोड़ रुपये कीमत का 251 मिलियन टन कोयला आयात करना पड़ा.

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